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748 जुगुप्सा मोहनीय कर्म किसे कहते हैं ?
उ. जिस कर्म के उदय से घृणा के भाव उत्पन्न होते हैं, वह जुगुप्सा मोहनीय कर्म है। आचार्य पूज्यपाद के अनुसार — जिसके उदय से आत्मा में स्वदोषों को छिपाने की और परदोषों के ढूंढ़ने की प्रवृत्ति होती है, वह जुगुप्सा होती है।
749. वेद किसे कहते हैं?
उ. शरीर
र-जन्य भोग- अभिलाषा को वेद कहते हैं।
750.
वेद मोहनीय कर्म के कितने प्रकार हैं?
उ. तीन प्रकार — स्त्रीवेद, पुरुषवेद और नपुंसकवेद ।
751. स्त्रीवेद मोहनीय कर्म किसे कहते हैं ?
उ. स्त्रीवेद — जिस प्रकार पित्त के प्रकोप से मीठा खाने की अभिलाषा उत्पन्न होती है, उसी प्रकार इस कर्म के उदय से स्त्री के पुरुष के प्रति अभिलाषा होती है। इस कर्म के उदय से मृदुता, अस्पष्टता, क्लीवता, कामावेश, नेत्र - विभ्रम आदि स्त्रीभावों की उत्पत्ति होती है। स्त्रीवेद करीषाग्नि की तरह होता है। स्त्री की भोगेच्छा गोबर की आग की तरह धीरे-धीरे प्रज्ज्वलित होती है और चिरकाल तक धधकती रहती है।
752. पुरुषवेद मोहनीय कर्म से क्या तात्पर्य है?
उ. जिस प्रकार शरीर में श्लेष्म के प्रकोप से खट्टा खाने की अभिलाषा उत्पन्न होती है उसी प्रकार इस कर्म के उदय से पुरुष की स्त्री के प्रति अभिलाषा होती है। आचार्य पूज्यपाद के अनुसार - 'जिसके उदय से जीव पुरुष संबंधी भावों को प्राप्त होता है वह पुंवेद है।' पुरुषवेद तृणाग्नि के सदृश होता है। जैसे तृण की अग्नि जलती और बुझती है वैसे ही पुरुष शीघ्र उत्तेजित और शांत होता है।
753. नपुंसक वेद मोहनीय कर्म किसे कहते हैं?
उ. जिस प्रकार शरीर में पित्त और श्लेष्म दोनों के प्रकोप से भुने हुए पदार्थों को खाने की इच्छा उत्पन्न होती है, उसी प्रकार इस कर्म के उदय से नपुंसक व्यक्ति के मन में स्त्री और पुरुष के प्रति अभिलाषा होती है। जिससे नपुंसक व्यक्ति के मन में संबंधी भावों को प्राप्त करता है वह नपुंसक वेद है।
कर्म-दर्शन 163