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'ऐसा भी संभव है...... फिर भी मैं तेरी चिंता में बरामदे में ही बैठा था....." तू बहुत रात बीते भवन में आया. उस समय तू बेभान था। तेरे पैर लड़खड़ा रहे थे... तू सीधा अपने कमरे में गया और सो गया..... दीपक भी नहीं बुझाया..... मैं तेरी शय्या के निकट आया....' तेरे मुंह से मद्य की दुर्गन्ध आ रही थी और तेरा चेहरा भी विकारग्रस्त था.... मैंने उसी समय माधव को जगाया
और तेरे मुंह पर ठंडा पानी डालने का विचार किया, किन्तु फिर मैंने सोचा कि तुझे जगाने के बदले प्रात:काल ही इस विषय की चर्चा की जाए।
रुद्रयश के चेहरे की रेखाएं बदल चुकी थीं...... फिर भी वह बोला-'पिताजी! आपको कोई दुःस्वप्न तो नहीं आया न?'
'अभी भी तू झूठ बोल रहा है। देख रुद्र!, एक ब्राह्मण का पुत्र मद्यपी, जुआरी और चोर बने यह केवल ब्राह्मण जाति के लिए नहीं, पूरे राष्ट्र के लिए दुःखदायी होता है। तू एक शांत पिता के समक्ष इस प्रकार असत्य बोल रहा है, क्या तेरा हृदय नहीं कांपता? ब्राह्मण के कर्त्तव्य मार्ग से च्युत होकर क्या तू स्वयं का अनिष्ट नहीं कर रहा है।'
'पिताजी.......'
बीच में ही पंडितजी बोले-'रुद्र! मैं आज तक के तेरे सारे दोषों को पचा लेता हूं...... यदि आगे कोई भी दूषण तेरे में मुझे दिखलाई देगा तो मैं कड़े से कड़ा दंड दूंगा।'
'बापू! सच, सच बता दूं?' 'हां, बोल।'
'कल रात में मैंने भांग पी ली थी...... शराब को तो मैंने अभी तक आंखों से भी नहीं देखी। भय के कारण मैंने असत्य कहा, इसके लिए क्षमायाचना करता
हूं।'
महापंडित बोले-'तेरी अवस्था अभी छोटी है। अभी यौवनकाल से तू कुछ दूर है. यदि इस अवस्था में तू जागरूक नहीं रहेगा तो मेरे लिए तेरा जीवन महावेदनामय हो जाएगा। सबसे पहले तू अपने समस्त दोषों का निवारण कर...... तेरी मां यदि आज जीवित होती और तेरी यह अवस्था देखती तो निश्चित ही वह विष पीकर जीवन-लीला समाप्त कर देती...... परन्तु मैं तुझे क्षमा करता हूं और स्वयं को सुधारने का अवसर देता हूं।'
रुद्रयश ने पिताजी का चरण-स्पर्श किया और कहा-'बापू! आपने मुझे स्वर्णिम अवसर दिया है। मैं धन्य हो गया।'
पंडित ने रुद्रयश के सिर पर हाथ रख कर कहा–'पुत्र! तेरा कल्याण हो। तेरी माता की आत्मा को शांति मिले।'
रुद्रयश के मन में वे प्रतीक्षारत मित्र घूम रहे थे। पिता को नमन कर वह ४२ / पूर्वभव का अनुराग