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से पूर्व हम प्रतिक्रमण कर लेती हैं, अन्यथा मां प्रश्न करेगी और असत्य हेतु से मन दु:खी होगा।'
दोनों सखियां खंड से बाहर आई। एक दासी को छत पर बिछौना करने की आज्ञा देकर दोनों कपड़े बदल आराधना-कक्ष में प्रतिक्रमण करने गईं।
प्रतिक्रमण से निवृत्त होकर जब दोनों सखियां छत पर पहुंची, उस समय चन्द्रमा की मधुर चांदनी विश्व को नहला रही थी। अभी रात्रि का पहला प्रहर पूरा नहीं हुआ था।
दोनों सखियां शय्या पर लेट गई।
दोनों बातें करने लगीं। पद्मदेव को देखकर सारसिका के मन पर क्या प्रभाव हुआ ! इस प्रश्न के उपजीवी अनेक प्रश्न उभरने लगे। बातें जब मन को भाती हैं। तब समय की कल्पना नहीं होती ।
पूर्वभव के प्रियतम की बातें करती- सुनती हुई तरंग चंचल हो उठी। धैर्य का बांध टूट गया। मिलन की आकांक्षा मनुष्य को अधीर बना डालती है। तरंगलोला बोली- 'सखी! आकाश की ओर देख । कुमुद को प्रसन्न करने वाला चांद जैसेजैसे ऊपर आ रहा है वैसे-वैसे श्रेष्ठीपुत्र से मिलने की मेरी आकांक्षा उदग्र बनती जा रही है। उनसे मिलने की भावना इतनी उग्र है कि तेरी सयानी बातें मेरे हृदय में स्थान नहीं पा सकतीं। सखी! मेरे प्राण मेरे प्रियतम को देखने के लिए तड़फ रहे हैं। तू मेरा एक काम कर । '
सारसिका ने प्रश्नायित दृष्टि से तरंग को देखा।
तरंग बोली- 'सखी! तू एक बार मुझे उनके पास ले चल
एक भव में वे मेरे प्रियतम थे और आज भी वे ही मेरे स्वामी हैं और स्नेह की वेदी पर लज्जा का बलिदान तो करना ही होगा ।'
सारसिका शय्या पर उठ बैठी और मृदस्वरों में बोली- 'चल, अब नीचे चलते हैं। विरह को जगाने वाले चन्द्रमा को देखकर तू विह्वल हो गई है, पगली हो गई है। तरंग ! तुझे अपनी कुल-मर्यादा का ध्यान रखना चाहिए। तेरी जैसी संस्कारी कन्या कुल को कलंकित करने के मार्ग पर चले, तो फिर शेष क्या बचेगा? ऐसा साहसिक कदम उठाने का विचार भी तू कैसे कर सकती है ? मन से तू उनकी हो चुकी है और वे तेरे हो चुके हैं धैर्य को क्यों खोना चाहिए ? पद्म भी तुझे पाने का प्रयत्न कर ही रहा है और तू भी अपने माता-पिता को कहकर उसे पाने का प्रयत्न कर
तरंगलोला विह्वल, पागल और विक्षिप्त सी हो गई थी, उसकी दृष्टि में केवल पूर्वभव का पति ही समाया हुआ था। वह बोली- 'सारसिका ! तू मेरी प्रिय सखी है तू मेरे सुख-दुःख की मित्र भी है संभव है कि लौकिक दृष्टि से जो विवेक मुझे रखना चाहिए वह मैं नहीं रख पा रही हूं, परन्तु मनुष्य को प्रत्येक
पूर्वभव का अनुराग / १०५