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3. आजीवक - मक्खली गौशालक 4. गैरिक
- तापस का शासन 5. परिव्राजक ___ - सांख्य शासन
बौद्ध साहित्य में श्रमण-सम्प्रदायों, उनके आचार्यों तथा सिद्धांतों का उल्लेख है।
1. अक्रियावाद __ - पूरण काश्यप 2. नियतिवाद - मक्खली गौशालक 3. उच्छेदवाद - अजित केशकम्बली 4. अन्योन्यवाद . - पकुधकात्यायन 5. चातुर्याम संवरवाद - निग्रंथ ज्ञातपुत्र
6. विक्षेपवाद - संजयवेलट्ठि पुत्त। अक्रियावाद (पूरणकाश्यप)
यह पूरणकाश्यप का दार्शनिक पक्ष है। पकुधकात्यायन भी अक्रियावादी था। पञ्चमहाभूतवाद पकुधकात्यायन के दार्शनिक पक्ष की एक शाखा है।91(क) उसका बौद्ध साहित्य में विस्तार है।92
पूरणकाश्यप अक्रियावादी आचार्य थे, उसका मन्तव्य था कि किसी ने कुछ किया या करवाया, काटा या कटवाया, तकलीफ दी या दिलवाई, शोक किया या करवाया, डरा या दूसरे को डराया, कष्ट सहा या दिया, हिंसा, डकैति, परस्त्रीगमन, असत्य संभाषण आदि कुछ भी किया उसे पाप नहीं लगता, तीक्ष्ण धार के चक्र से यदि कोई संसार के समस्त प्राणियों को मारकर ढेर लगादे, वह पाप का भागी नहीं बनेगा, उसी तरह कोई गंगा नदी के उत्तर किनारे पर जाकर दान, यज्ञ, धर्म, संयम, आदि अनुष्ठान करता है तो पुण्य नहीं होगा, अनुभवों से परिपूर्ण मानकर लोग उन्हें पूर्ण कहते और वे ब्राह्मण थे इसलिये काश्यप थे वे नग्न रहते थे। उनके अस्सी हजार अनुयायी थे। नियतिवाद
इस मत के प्रवर्तक आचार्य मक्खली गोशालक थे, नियतिवादी क्रियावाद - अक्रियावाद दोनों में विश्वास नहीं रखते। उनके अभिमत से प्राणी के अपवित्र होने में न कोई कारण है न कोई हेतु। बिना हेतु और कारण के ही वे अपवित्र होते है। इसी
अहिंसा की सूक्ष्म व्याख्याः क्रिया
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