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प्रथम अध्याय के अनुसार जातुकर्ण्य वशिष्ठ का पुत्र था। उन्हीं से व्यास ने वेदाध्ययन किया था। अत: जातुकर्ण्य पाराशर के भाई हो सकते हैं।
4.वाल्मिकी- रामायण के रचयिता वाल्मिकी ऋषि सर्वविदित हैं।
5.रोमहर्षिणी- पुराण संहिताओं के रचयिता के रूप में रोमहर्षण का नाम मिलता है।
6.सत्यदत्त-सत्यकाम जाबाल, सत्यज्ञ आदि नाम तो मिलते हैं। किन्तु सत्यदत्त नाम की उचित जानकारी प्राप्त नहीं हो सकी है।
7.व्यास- पराशर ऋषि के पुत्र महाभारत के रचयिता महर्षि व्यास विख्यात हैं।
8. ऐलापुत्र या इलापुत्र-प्रजापति कर्दम का पुत्र इल या एल था। वह वालीक देश का राजा था। जब वह स्त्री रूप में परिवर्तित हो गया तब उसका नाम इला या एला बन गया। कौटिल्य के अर्थशास्त्र में भी एक एल नामक राजा का निर्देश मिलता है निश्चित रूप से यह नहीं कहा जा सकता कि निर्दिष्ट एलापुत्र वही है या दूसरा।
9. औपमन्यव- एन्द्रदत्त, अयस्थूण आदि के बारे में कोई विशेष विश्वस्त जानकारी प्राप्त नहीं है। अकलंक ने अलग-अलग वाद में विश्वास रखने वाले लोगों के कतिपय नामों का उल्लेख किया है। उनका आशय क्या था, यह बतलाना संभव नहीं है। फिर भी यह स्पष्ट है कि अकलंक द्वारा निर्दिष्ट उक्त सभी विचारक प्राय:वैदिक हैं। अक्रियावादियों में सांख्यदर्शन के पुरस्कर्ता तथा अज्ञानवादियों में ब्रह्मसूत्रकार बादरायण और पूर्वमीमांसा के प्रवर्तक जैमिनी मुख्य हैं।
बौद्धमत के प्रवर्तकों में किसी आचार्य का उल्लेख नहीं किया गया है। यद्यपि इन दार्शनिकों के युग में बौद्धधर्म का प्रभाव भी था। अपने ग्रंथों में उन्होंने धर्मकीर्ति आदि का खण्डन भी किया है। संभव है उनके द्वारा निर्दिष्ट नाम अवश्य ही किसी परम्परागत स्रोत से उन्हें प्राप्त हुए होंगे।
सिद्धसेनगणी ने अपनी तत्त्वार्थ भाष्य टीका के 8 वें अध्याय के प्रारंभ में उन्हीं नामों की चर्चा की है जिनकी अकलंक ने की। संभव हैं वे नाम उन्होंने भी अकलंकदेव के तत्त्वार्थ वार्तिक से ही लिये हों। दृष्टिवाद में इन मतों का निरूपण या निराकरण था उस संदर्भ में सिद्धसेन ने अपना मत प्रकट नहीं किया, यह केवल अकलंकदेव ने ही किया है।
आचार्य वीरसेन की धवला टीका और आचार्य सिद्धसेन की तत्वार्थ 20
अहिंसा की सूक्ष्म व्याख्याः क्रिया