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आदि में परिवर्तन आ जाता है। आवेग की अभिव्यक्ति बाह्य व्यवहार में होती है। व्यक्ति भय से भागने लगता है और भय से दुःख का अनुभव भी होता है।
संवेग, आवेग एक जटिल पहेली है। उनकी निश्चित व्याख्या असंभव है। सोरेन्सन ने आवेग को चार प्रकार से समझाया है।7 (1) उद्दीपन (2) शारीरिक परिवर्तन (3) अभिव्यक्ति (4) अनुभव। आवेग-संवेग के विभिन्न प्रकार
मेलवीन मार्क्स ने आवेगों का वर्गीकरण इस प्रकार किया हैं। 78 परिस्थिति जन्य स्वसंदर्भ अन्तर्वैयक्तिक
सांवेदनिक बोधनात्मक (1) अभिमान (1) प्रेम (1) आनन्द (1) हर्ष (2) शर्म (2) धिक्कार (2) वेदना (2) दुःख (3) अपराध
(3) भय (4) पश्चात्ताप
(4) क्रोध संवेग की स्थिति में स्वतः संचालित नाड़ीतंत्र, बृहद् मस्तिष्क और हाईपोथेलेमस विशेष रूप से प्रभावित होते हैं। संवेग की समाप्ति के बाद भी उसका प्रभाव कुछ समय तक बना रहता है। उस समय व्यक्ति की जो मानसिक स्थिति बनती है मनोविज्ञान में उसे 'मनोदशा' कहा गया है। संवेग और मनोदशा का अन्तर
संवेग में कालमान कम किन्तु भावों की तीव्रता अधिक होती है। मनोदशा में कालमान अधिक किन्तु भावों की तीव्रता कम होती है। दोनों में अन्तःक्रिया चलती है। संवेग या मूल प्रवृत्ति जब किसी वस्तु के चारों ओर स्थायी रूप से सुगठित हो जाती है तब उन्हें स्थायी भाव कहते हैं।
स्थायी भाव की तरह ही हमारे अन्तरंग व्यक्तित्व का एक महत्त्वपूर्ण आयाम हैभावनाग्रंथि। नैतिक एवं चेतन रूप से क्रियाशील भावना को स्थायी भाव एवं अनैतिक तथा अचेतन रूप से क्रियाशील भावना को भावना ग्रंथि कहा जाता है। इन दोनों से संचालित हो व्यक्ति ऐच्छिक और अनैच्छिक क्रियाएं करता है।79
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अहिंसा की सूक्ष्म व्याख्याः क्रिया