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(2) अहम् - फ्रायड ने अहम् को चेतन मस्तिष्क माना है। अहम् के मुख्य कार्य हैं- शरीर का पोषण करना, उसे हानि से बचाये रखना। इदम् की इच्छाओं के साथ तालमेल बिठाना। यह केन्द्रिय इकाई है और वातावरण के प्रभाव को देखकर कार्य करती है।
(3) परा अहम्- यह नैतिकता से परिपूर्ण चेतना है। सामाजिक आदर्शों की इसमें विद्यमानता है। यह समाज परिवार और संस्कृति के प्रभाव से बनता है। इदम् आवेग-प्रधान अचेतन है। अहम् चेतन स्तर पर कार्य करता है फिर भी इसका अधिकांश भाग अवचेतन तथा अचेतन में रहता है। पराअहम् भी तीन स्तरों पर कार्य करता है। यह अहम् की अपेक्षा चेतन कम, अवचेतन तथा अचेतन अधिक होता है।
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मन की अलग-अलग अवस्था
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युंग का मत- युंग ने अचेतन मन को जन्मजात या परम्परागत माना है। उसके अनुसार अचेतन मन एक संस्कार है । यह अनेक परम्पराओं से प्राप्त होता है। अचेतन मन को दो भागों में विभक्त किया है-68 (1) वैयक्तिक अचेतन मन और (2) सामूहिक या जातिगत अचेतन मन ।
(1) वैयक्तिक अचेतन मन- जो इच्छाएं, कामनाएं दमित कर दी जाती है वे व्यक्ति के वैयक्तिक अचेतन मन में पहुंच जाती हैं और उसके व्यवहार पर प्रभाव डालती है। व्यक्ति की इच्छाओं का दमन सामाजिक तथा नैतिक बंधनों के कारण होता है।
(2) सामूहिक या जातिगत अचेतन मन- जातिगत संस्कार, वंश-परम्परा से प्राप्त समस्त गुण, योग्यताएं इसी मन में एकत्र रहती हैं।
क्रिया और मनोविज्ञान
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