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(2) कारणात्मक भौतिकवाद के अनुसार मन पुद्गल का कार्य है। (3) गुणात्मक भौतिकवाद के अनुसार मन पुद्गल का गुण है। मन के प्रकार
जैन दर्शन के अनुसार मन के दो प्रकार हैं- (1) द्रव्यमन और (2) भावमन ।
(1) द्रव्यमन - मन का भौतिक पक्ष द्रव्य मन है। चेतन पक्ष भावमन है। द्रव्यमन मनोवर्गणा के पुद्गल - स्कंन्धों से निर्मित है। यह वर्ण-गंध-रस-स्पर्श युक्त होने के कारण पौगलिक वस्तुओं के समान मूर्त है। सूक्ष्म होने से चर्म चक्षुओं से ज्ञेय नहीं है । अतीन्द्रिय ज्ञान का विषय है। यह आत्मा से भिन्न जड़ात्मक है। 18
(2) भावमन - भावमन चेतना का अंश होने से चेतन है । वर्णादि पौद्गलिक गुणों हित होने से अमूर्त है। अतीत, भविष्य आदि का संकलनात्मक ज्ञान भाव मन के द्वारा ही होता है। 19 (क)
विशेषावश्यक भाष्य में द्रव्यमन को पौद्गलिक (मनोवर्गणा) और भाव मन को चिन्तन-मनन रूप कहा है। भाव मन चेतना की ही एक रश्मि है। इसलिये यह जीव से सर्वथा भिन्न नहीं है और इसे आत्मिक कहा जाता है। 19 (ख)
दिगम्बर ग्रंथ धवला के अनुसार मन स्वतः नो कर्म है। पुद्गल विपाकी अंगोपांग नाम कर्म के उदय की अपेक्षा रखनेवाला मन द्रव्य मन है तथा वीर्यान्तराय और नोइन्द्रिय कर्म क्षयोपशम से जो विशुद्धि उत्पन्न होती है, वह भाव मन है। 19 (ग)
द्रव्यमन और भावमन के उपर्युक्त स्वरूप के सम्बन्ध में दिगम्बर और श्वेताम्बर में कोई मतभेद नहीं है। द्रव्यमन कब बनता है और शरीर में इसका स्थान कहां है ? विशेषत: यही विप्रतिपत्ति का विषय है। जैन विचारधारा द्रव्यमन - भावमन के माध्यम से चेतन (आत्मा) और जड़ (कर्म - परमाणुओं) में परस्पर क्रिया स्वीकार करती है। किन्तु द्रव्यमन, भावमन एक दूसरे को किस प्रकार प्रभावित करते हैं इस समस्या के निवारण के तीन उपाय हैं
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1. भौतिक और आध्यात्मिक सत्ताओं में से किसी एक के अस्तित्व का निषेध करना।
2. उनमें एक प्रकार का समानान्तरवाद मान लिया जाये।
3. दोनों में क्रिया-प्रतिक्रिया को स्वीकार किया जाये।
अहिंसा की सूक्ष्म व्याख्याः क्रिया