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थायमस
आनन्द केन्द्र अनाहत चक्र हृदय एड्रीनल
तैजस् केन्द्र मणिपुर चक्र नाभि गोनाड्स (नाभि चक्र) स्वास्थ्य केन्द्र स्वाधिष्ठान चक्र पेडू गोनाड
शक्ति केन्द्र मूलाधार चक्र पृष्ठ रज्जु के नीचे का छोर इन ग्रंथियों के स्राव जैव रासायनिक-यौगिक के रूप में होते है। स्राव को ग्रीक भाषा में हार्मोन कहते हैं। हार्मोन का अर्थ है- मैं उत्तेजित करता हूं। अल्पमात्रिक स्राव भी अधिक प्रभावी होते हैं। चयापचय, वृद्धि, प्रजनन, रूपान्तरण, काम - प्रवृतियां, जल - नियमन आदि महत्त्वपूर्ण कार्यों का नियंत्रण करने का दायित्व इन्हीं स्रावों पर होता है। अन्तःस्रावी ग्रन्थियों का स्वरूप और कार्य इस प्रकार है
पीनियल ग्रंथि- इस ग्रंथि का स्थान मस्तिष्क के मध्य में होता है। परिधिगत स्वत: संचालित नाड़ीतंत्र के साथ इसका सम्बन्ध है। इससे होनेवाला स्राव अन्य ग्रंथियों के स्रावों का नियमन करता है, सोडियम, पोटेशियम और पानी के प्रमाण को संतुलित रखता है। यह आकार में गेहूं के दाने जितनी और वजन में एक ग्राम से भी कम है। यह ग्रंथि यदि अपना कार्य न करे तो प्रतिभा का विकास नहीं होता, रक्तचाप बढ़ जाता है, समय से पूर्व काम-वृत्ति का उद्रेक हो जाता है, मस्तिष्कीय मेरूजल के परिभ्रमण पर नियंत्रण नहीं रहता। जीवन के प्रारंभिक दो-तीन वर्षों में शिशु के विकास का दायित्व इसी पर है। इस प्रकार भौतिक और मानसिक विकास को व्यवस्थित रखने में इसकी महत्त्वपूर्ण भूमिका है।
पिच्युटरी ग्रंथि-इसे मुख्य या पीयूष ग्रंथि भी कहा जाता है। अन्त:स्रावी ग्रंथियों में यह प्रधान है। सभी ग्रंथियों को कार्य सम्पादन का आदेश यहीं से मिलता है। हमारे मनोबल, निर्णायक शक्ति, स्मृति और श्रवण-शक्ति पर भी इसका नियमन है। पिच्यूटरी जागृत होकर व्यवस्थित कार्य करे तो व्यक्ति महान् प्रतिभाशाली, प्रख्यात लेखक, कवि, वैज्ञानिक, दार्शनिक बन जाता है। शरीर के विकास के लिये भी यह जिम्मेदार है। शरीर का कोई भी अंग इसके प्रभाव से वंचित नहीं है। मटर के दाने जितना उसका आकार दो भागों में विभाजित है- अग्रखण्ड और पृष्ठ खण्ड। प्रत्येक खण्ड के अपने अपने उद्गम स्रोत, कार्य तथा स्राव हैं। अग्रखण्ड में होने वाले स्राव । (ग्रोथ हॉर्मोन)
और पृष्ठ खण्ड में (सोमेटो ट्रोपिक हॉर्मोन) है जो कार्बोहाईड्रेट के चयापचय और वृद्धि पर नियंत्रण करते है। अग्रखंड सम्पूर्ण अन्तःस्रावी तंत्र का नियामक है।57(क)
क्रिया और शरीर - विज्ञान
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