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________________ अतिरिक्त अवशोषण कर लेती है जिससे मल कठोर हो जाता है। इससे कोष्ठ बद्धता पैदा होती है। यकृत तथा पित्तीय- यंत्र - यकृत पाचन तंत्र में अधिक महत्त्वपूर्ण है। इसमें 500 रसायन तैयार होते हैं । यकृत का मुख्य कार्य पित्त का निर्माण करना है। यह प्रतिदिन औसतन एक लीटर पित्त का स्राव करता है। उसका संग्रह पित्ताशय में होता है। यकृत की तुलना गाड़ी में लगे रेडिएटर से की जा सकती है। यकृत एक बहिःस्रावी ग्रंथि है। यदि लीवर पर्याप्त मात्रा में पित्त का निर्माण न करे तथा उसका प्रवाह मुक्त रूप से पक्वाशय से छोटी आंत में प्रवाहित न हो तो पाचनतंत्र में तेजाबी असर बढ़ जाता है। शरीर का तापमान भी अधिक हो जाता है। इससे पेट और अन्ननली में जलन महसूस होने लगती है। फलस्वरूप अल्सर हो जाता है। शरीर के अनेक अवयवों की कार्यदक्षता यकृत पर निर्भर है। क्लोमग्रंथि आमाशय के ठीक पीछे पेट की पिछली दीवार से सटी हुई है। शरीर में सबसे बड़ी ग्रंथियों में पहला स्थान लीवर का है, दूसरा क्लोमग्रंथि का । यह प्रतिदिन 600 से 800 मिलीलीटर स्राव करती है । स्राव दो प्रकार के है - बहिः स्राव, अन्तःस्राव। बहि:स्राव में कई प्रकार के खमीर होते हैं जो स्टार्च (श्वेतसार) तथा प्रोटीन को पचाने में उपयोगी बनते हैं। क्लोम रस का एक ट्रीप्सीन नामक खमीर भोजन में स्थित प्रोटीन और पेप्टोन पोलिपेप्टाइड तथा एमिनो एसिड में बदलता है। दूसरा खमीर स्टार्च को शर्करा में तथा तीसरा खमीर वसा को फेटी एसिड और ग्लिसरीन में परिणत करता है। क्लोमग्रन्थि के भीतर छोटे-छोटे कोष-समूह हैं जिन्हें लेंगरहेन्स के द्वीप कहा जाता है। क्लोमग्रंथि की अन्त: स्रावी क्रिया के लिये लेंगरहेन्स ही जिम्मेदार होते हैं। इनमें दो प्रकार की कोशिकाएं होती है- (अ) अल्फा और (ब) बीटा। बीटा इन्सुलीन नाम का अन्तःस्राव उत्पन्न करती है जो ग्लूकॉज को ग्लायकोजन में रूपान्तरित कर खून में शर्करा का स्तर सामान्य बना देता है। अल्फा ग्लूकोगोन अन्तःस्राव उत्पन्न कर ग्लायकोजन को आवश्यकता के अनुसार ग्लोकॉज में रूपान्तरित कर देता है, रक्त में ग्लुकॉज का स्तर बढ़ा देता है। इस प्रकार इंसुलिन और ग्लूकोगोन दोनों मिलकर रक्त में में शर्करा का स्तर संतुलित रखते हैं। मानव शरीर में 100 मिलीग्राम रक्त लगभग 0.07 से 0.12 ग्राम ग्लूकोज होता है जो जीवन के लिये आवश्यक है। उसका प्रमाण 0.14 या उससे अधिक हो जाता है तब स्थिति चिन्ताजनक बन जाती है। उससे मधुमेह (डायबिटीज) की बीमारी हो जाती है। 56(ख) 344 अहिंसा की सूक्ष्म व्याख्याः क्रिया
SR No.032421
Book TitleAhimsa ki Sukshma Vyakhya Kriya ke Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaveshnashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2009
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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