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श्वसन तंत्र के सहयोगी अंग है- नाक, ग्रसनी, श्वास-प्रणाल, श्वसनी, श्वसनिका आदि। ये सभी एक दूसरे से श्रृंखलाबद्ध जुड़े हुए हैं। इनके माध्यम से हवा भीतर फेफड़ों तक पहुंचती है। जहां वायु का आदान-प्रदान होता है।
मनुष्य के दोनों फेफड़ों में लगभग 30 करोड़ से 65 करोड़ तक शास प्रकोष्ठ होते हैं। मनुष्य अपने जीवन काल में करीब 1,3 करोड़ घन फीट हवा ग्रहण कर लेता है। रक्त फेफड़ों से ऑक्सीजन का आयात कर कोशिकाओं में निर्यात करता है। शरीर में ऑक्सीजन का महत्त्वपूर्ण स्थान है। यदि मस्तिष्क को तीन मिनट ऑक्सीजन न मिले तो उसकी कोशिकाएं मृत हो जाती है। उन्हें पुनः जीवित नहीं किया जा सकता। फेफड़े कार्यक्षम रह सके इसलिये हवा के आगमन और निर्गमन पथ का साफ और विस्तृत रहना जरूरी है। इस तथ्य को निम्नांकित चित्र के माध्यम से समझा जा सकता है
खुला रास्ता
बंद रास्ता
ऑक्सीजन जब प्रत्येक कोशिका में पहुंचता है तो वहां उसका ऑक्सीकरण ( उपचय) होता है। ऑक्सीकरण के बाद ऊर्जा मुक्त होती है जो ए.टी.पी. ( एडिनोसीन ट्राइफोस्फेट) रूप में संग्रहित की जाती है। ऊर्जा को ग्रहण एवं विसर्जन करने वाली क्रियाओं को जोड़ने का महत्त्वपूर्ण कार्य (ए.टी.पी.) करता है। पदार्थों की चयापचय क्रिया से जो ऊर्जा मुक्त होती है उसका संग्रह ए.टी.पी. अणुओं में रहता है। ए.टी.पी. आवश्यकतानुसार ऊर्जा का वितरण करता है। जैसे पृथक्-पृथक् वस्तुओं के क्रयविक्रय में धन का उपयोग किया जाता है। वैसे ही कोषीय क्रियाओं के व्यवहार में ए.टी.पी. निमित्त है। SS (ग)
शरीर विज्ञान की दृष्टि से श्वसन क्रिया के दो प्रकार हैं- बाह्य श्वसन, आन्तरिक श्वसन। जब फुफ्फुस की भीतरी हवा का दबाब बाह्य वातावरण के दबाव से अधिक होता है तब हवा फुफ्फुस से बाहर आती है उसे निःश्वसन या बाह्य श्वसन कहते हैं। इससे विपरीत जब बाहर के वातावरण का दबाव भीतर के दबाव से अधिक होता है तब हवा भीतर प्रवेश करती है, उसका नाम अन्तःश्वसन है।
क्रिया और शरीर - विज्ञान
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