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(1) गति (2) पोषण
(3) श्वसन
(4) उत्सर्जन
(5) चयापचय (6) वृद्धि
(7) सचेतना
( 8 ) प्रजनन
कोशिका का विभाजन भी आश्चर्यजनक है। एक डिम्बाणु कोशिका से करोड़ों कोशिकाओं का निर्माण होता है। इससे बड़ा आश्चर्य है निषेचित डिम्बाणु में संग्रहित असंख्य सूचनाओं का हस्तान्तरण ज्यों का त्यों सभी कोशिकाओं को कर दिया जाता है। यह प्रक्रिया विद्यमान जीन के माध्यम से होती है। जीन बहुत सूक्ष्म जीवन-तत्त्व है। वह आनुवंशिक गुण-दोषों का संवाहक होता हैं।
कोशिका के केन्द्र में डी. एन. ए. यानि जीन की संरचना करने वाले 'प्रधान अणु' तथा आर.एन.ए पाये जाते हैं। वास्तु शिल्पी एवं ठेकेदार की तरह डी. एन. ए. कोशिकाओं का अधिनायक है, यह उनके क्रियाकलापों को नियंत्रित करता है। कोशिकाओं के संघटक को उसके द्वारा ही सारे आदेश दिये जाते हैं। शरीर के रंग रूप, आकार, बनावट आदि से सम्बन्धित सभी सूचनाएं सांकेतिक रूप में जीन में अंकित है।
प्रतिक्षण लाखों-करोडों कोशिकाएं नष्ट होती हैं और नई कोशिकाएं उत्पन्न होती नई कोशिकाओं का निर्माण जीर्ण कोशिकाओं के विभाजन द्वारा होता है । यही शरीर की चयापचय क्रिया है। जैन दर्शन के अनुसार शरीर रचना का मुख्य हेतु है - नामकर्म । नामकर्म चित्रकार के समान है। जैसे चित्रकार अपनी कल्पना से नये - नये चित्रों का निर्माण करता है। वैसे ही यह कर्म अनेक प्रकार की शारीरिक संरचना के लिए जिम्मेदार है। नामकर्म के अनेक भेद-प्रभेद हैं। उनके द्वारा विभिन्न प्रकार के शरीर सम्बन्धी कार्य सम्पादित होते हैं। जैसे- गति नाम कर्म के प्रभाव से जीव मनुष्य, तिर्यञ्च आदि गतियों
जाता है। जाति नाम कर्म से जीव को आंख, कान आदि इन्द्रियों की ज्ञानात्मक शक्ति प्राप्त होती है। शरीरनाम कर्म से औदारिक, वैक्रिय आदि शरीर उपलब्ध होते हैं। वर्ण नामकर्म से शरीर के गौर, कृष्ण आदि विविध वर्ण निर्धारित होते हैं। उच्छ्वास नामकर्म श्वासोच्छ्वास के तंत्र की रचना करता है । 46
विभिन्न तंत्र और उनकी क्रियाएं
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वैज्ञानिक आधार पर शरीर रचना का मूल कोशिका है 47 कोशिकाओं से ऊत्तक, ऊत्तकों से अवयव एवं अवयवों के समूह से तंत्रों का निर्माण होता है। शरीर के विशिष्ट
अहिंसा की सूक्ष्म व्याख्याः क्रिया