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लिंग शरीर के कारण ही पूर्वजन्म, पुनर्जन्म होता है। पूर्व स्थूल शरीर का त्याग कर जीव नये स्थूल शरीर को धारण करता है। सांख्य दर्शन भी लिंग शरीर के अभाव में स्थूल शरीर की उत्पत्ति नहीं मानता। लिंग शरीर के कारण स्थूल शरीर भो । करता है। स्थूल शरीर पांचों स्थूल भूतों के योग से बनता है। यह प्रत्यक्ष है। कुछ लोग आकाश रहित चार भूतों से स्थूल शरीर की सृष्टि मानते हैं। वेदान्त दर्शन
वेदान्त में सृष्टि का कर्ता ईश्वर है। ईश्वर से आकाश का उद्भव होता है। आकाश से क्रमशः स्थूल तत्त्वों की उत्पत्ति होती है। यह क्रमिक विकास सूक्ष्म से स्थूल की ओर होता है। वेदान्त में स्थूल शरीर का निर्माण सत्रह अवयवों से माना है। पांच ज्ञानेन्द्रियां, पांच कर्मेन्द्रियां, पांच प्राण, मन और बुद्धि ये स्थूल शरीर के अवयव हैं। सूक्ष्म शरीर मनोमय, प्राणमय तथा विज्ञानमय कोष से युक्त है जो क्रमशः क्रिया, इच्छा, ज्ञान, शक्ति संपन्न होने से कार्य रूप है। कर्मेन्द्रिय के समूह को प्राणमय कोष के नाम से अभिहित किया है। इसमें क्रियाशीलता का प्राधान्य है।34
वेदान्त में मान्य सूक्ष्म एवं स्थूल लिङ्ग शरीर की आंशिक तुलना जैन के कार्मण । शरीर एवं स्थूल शरीर की औदारिक शरीर से हो सकती है। वेदान्त सूक्ष्म शरीर में ज्ञान, चारित्र, सुख - दु:ख, व्यवहार, कर्तृत्व, व्यक्तित्व आदि के संस्कार संचित मानता है। कार्मण शरीर औदारिक आदि शरीरों का कारण है वैसे ही लिंग शरीर भी स्थूल शरीर का कारण है। कार्मण शरीर की तरह लिंग शरीर भी अप्रतिघाती है। संसार में परिभ्रमण का हेतु कार्मण शरीर की तरह लिंग शरीर ही है। जैन दर्शन सम्मत वैक्रिय, आहारक और तैजस् शरीर के समकक्ष शरीर का उल्लेख सांख्यदर्शन में उपलब्ध नहीं होता। गर्भ - विज्ञान
भवन-निर्माण में अनेक पदार्थों की अपेक्षा रहती है वैसे ही गर्भ का निर्माण मातृज, पितृज, रसज एवं सत्वज तत्वों पर आधारित है। इस संदर्भ में भगवती सूत्र में कुछ प्रश्न उठाये गये हैं जो शरीर-रचना-विज्ञान की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण हैं।
गौतम स्वामी ने भगवान महावीर से पूछा- गर्भस्थ जीव माता से कितने अंग प्राप्त करता है ?36 भगवान महावीर ने कहा- मांस, शोणित और मस्तुलंग (मस्तिष्कीय मज्जा)- ये तीन अंग मातृज हैं। इसी प्रकार अस्थि, अस्थिमज्जा, केश (श्मश्रु, रोम, नाखून) पितृज हैं। शेष अंग रज तथा वीर्य के सम्मिश्रण से निर्मित है।37
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अहिंसा की सूक्ष्म व्याख्याः क्रिया