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कैसे कर सकता है। अनन्तकाल के प्रत्येक क्षण में अपने अस्तित्व को बनाये रखने के लिये प्रत्येक पदार्थ को परिणमन की प्रक्रिया से गुजरना आवश्यक है। परिणमन से गुजरने पर यह अनिवार्य नहीं है कि उसमें विसदृशता आये। सदृश परिणमन भी परिणमन ही है। पाश्चात्य चिंतन में परिणमन का सिद्धांत सष्टि के विकास में एम्पीडोक्लीज ने चक्रीय प्रत्यावर्तन का सिद्धांत माना है। प्रेम और घृणा, संवाद और विग्रह इस प्रकार परस्पर विरोधी शक्तियां द्रव्यों के मिश्रण और पृथक्करण से संसार की विविध वस्तुओं की सृष्टि करती हैं। मूल रूप से ये शक्तियां भौतिक हैं। सभी आकर्षण और विकर्षण इन्हीं की देन हैं। इस प्रक्रिया का कहीं अंत नहीं।
एम्पीडोक्लीज की तरह पाइथोगोरस ने पदार्थ मात्र को दस भागों में विभक्त किया है। निम्नोक्त विभाजन से स्पष्ट होता है कि विरोधी शक्तियां ही सृष्टि संरचना में हेतुभूत है। विभाजन इस प्रकार है1. सीमित (Limited)
असीमित (Unlimited) 2. विषम (Odd)
सम (Even) 3. एक (One)
अनेक (Many) 4. दक्षिण (Right)
वाम (Lift) 5. पुलिंग (Masculine) स्त्रीलिंग (Feminine) 6. स्थिरता (Rest)
गति (Motion) 7. ऋजु (Limited)
वक्र (Crooked) 8. प्रकाश (Light)
अंधकार (Darkness) 9. शुभ (Good)
अशुभ (Evil) 10. वर्ग (Square)
fays (Oblong) पाश्चात्य जगत् में एनेग्जागोरस का सिद्धांत रहा न तो कुछ आता है, न कुछ जाता है। 'वस्तु का कोई भी गुण अन्य गुण में संक्रांत नहीं होता। इसका अर्थ यह नहीं कि एनेग्जागोरस परिवर्तन के पक्षधर नहीं थे। वस्तुतः ये निरपेक्ष स्थायित्व और निरपेक्ष परिवर्तन- दोनों के विरूद्ध थे। सापेक्ष परिवर्तन उन्हें मान्य था। एम्पीडोक्लीज के समान उन्होंने भी कहा कि मूल द्रव्यों में रूपान्तरण नहीं होता। उनके मिश्रण और पृथक्करण से असंख्य वस्तुओं का उत्पादन संभव है।
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अहिंसा की सूक्ष्म व्याख्याः क्रिया