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निक्षेपाधिकरण-निक्षेप का अर्थ है- वस्तु को रखना। निक्षेप रूप अधिकरण निक्षेपाधिकरण है। उसके चार प्रकार हैं - 1. अप्रत्युपेक्षित निक्षेपाधिकरण 2. दुष्प्रमार्जित निक्षेपाधिकरण 3. सहसा निक्षेपाधिकरण 4. अनाभोग निक्षेपाधिकरण।27 ।
(1) अप्रत्युपेक्षित निक्षेपाधिकरण-रखने योग्य उपकरणों को बिना देखे भूमि पर रखना।
(2) दुष्प्रमार्जित निक्षेपाधिकरण- भूमि का सही प्रमार्जन न करना अथवा जागरूकता पूर्वक न रखना।
(3) सहसा निक्षेपाधिकरण-प्रतिलेखन, प्रमार्जन किये बिना शक्ति के अभाव में सहसा उपकरणादि रख देना।
(4) अनाभोग निक्षेपाधिकरण- किसी वस्तु को योग्य स्थान पर न रखना। प्रतिलेखन, प्रमार्जन के बिना कहीं भी वस्तु का निक्षेप कर देना।
संयोगाधिकरण- इसमें दो शब्द है - संयोग और अधिकरण। संयोग का अर्थ हैमिलन यानि संयोजन करना। अधिकरण का अर्थ है- ऐसे साधन, जिनके द्वारा आत्मा पाप का संग्रह करता है। जैसे-ऊंखल,घट्टी, हल, मूसल, लोहे का फाल, जुआ तथा बाण आदि। जब ऊंखल के साथ मूसल, हल के साथ लोहे का फाल, शकट के साथ जुआ और धनुष के साथ बाण का संयोजन किया जाता है, तब उस संयोग के निमित्त से जो कर्म-बंध होता है, वह संयोगाधिकरण आश्रव है। इसके भक्तपान-संयोगाधिकरण, उपकरण-संयोगाधिकरण दो भेद हैं। भक्त- भोजन के साथ व्यञ्जन, गुड़, फल, शाक आदि मिलाना। पान- पीने योग्य द्राक्ष, दाडिम आदि के रस में शक्कर, मिश्री मिलाना।
उपकरण संयोगाधिकरण-वस्त्र, पात्र आदि का रक्त, पीत आदि वर्गों के साथ तथा शोभा के निमित्त उसके प्रान्तभाग को अन्य दूसरे वस्त्रों के साथ अथवा विविध रंगीन धागों से संयुक्त करना।
निसर्गाधिकरण-निसर्ग का तात्पर्य त्याग या विसर्जन से है। निसर्गरूप अधिकरण निसर्गाधिकरण है। उसके तीन स्तर हैं
(1) काय निसर्गाधिकरण (2) वाङ् निसर्गाधिकरण (3) मन निसर्गाधिकरण।
क्रिया और अन्तक्रिया
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