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इन चार प्रश्नों में आयु परिणाम के निम्नोक्त नौ प्रकारों का समावेश है। प्रथम प्रश्न में (1-2) द्वितीय प्रश्न में (3-4) तृतीय प्रश्न में (5-6-7)और चतुर्थ प्रश्न में (8-9) का समावेश होता है। जब अगले जन्म का आयुष्य बंध होता है तब इन सभी का साथसाथ निश्चय हो जाता है। वृत्तिकार ने परिणाम के तीन अर्थ किये हैं- स्वभाव, शक्ति और धर्म।75 - आयुष्य कर्म के नौ परिणाम 1 गति परिणाम इसके माध्यम से जीव मनुष्यादि गति प्राप्त करता है। 2 गति बंधन परिणाम इससे जीव प्रतिनियत गति कर्म का बंध करता है जैसे
जीव नरकायु स्वभाव से मनुष्य गति,तिर्यंच गति नामकर्म का बंध करता है। देव गति और नरक गति का बंध नहीं
करता। 3 स्थिति परिणाम इससे जीव स्थिति (अन्तर्मुहूर्त से तैतीस सागर) का बंध
करता है। 4 स्थिति बंधन परिणाम इसके माध्यम से जीव वर्तमान आयु के परिणाम से भावी
आयुष्य की नियत स्थिति का बंध करता है। जैसे-तिर्यम् आयु परिणाम से देव आयुष्य का उत्कृष्ट बंध अठारह
सागर का होता है। 5 ऊर्ध्व गौरव परिणाम गौरव का अर्थ है -गमन। इस के माध्यम से ऊर्ध्वगमन
करता है। 6 अधो गौरव परिणाम इससे जीव का अधोगमन होता है। 7 तिर्यग् गौरव परिणाम इससे तिर्यग् गमन की शक्ति प्राप्त होती है। 8 दीर्घ गौरव परिणाम इसके माध्यम से जीव लोकान्त तक गमन करता है। 9 ह्रस्व गौरव परिणाम इससे जीव हस्व गमन (थोड़ा गमन) करता है।75(ख) गति- आगति, च्यवन, उपपात स्थानांग में ये चारों शब्द पारिभाषिक हैं।76(क)
गति - वर्तमान भव से आगामी भव में जाना। आगति - पूर्वभव से वर्तमान भव में आना।
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अहिंसा की सूक्ष्म व्याख्याः क्रिया