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देव-आयुष्य प्राप्ति के कारण
1. सराग संयम- अवीतराग दशा में होने वाली संयम-साधना 2. संयम का आंशिक पालन- श्रावक धर्म का पालन करना 3. बाल तपस्या-मिथ्यात्वी की तपस्या 4. अकाम निर्जरा-मोक्ष की इच्छा के अभाव में की जाने वाली तपस्या से
___ होनेवाली आत्मशुद्धि। आयुष्य बंध के कारण ... आयुष्य के पुद्गलों से जीवनी-शक्ति का निर्माण होता है। अगले जन्म के आयुष्य का बंध वर्तमान में हो जाता है। आयुष्य के बंध काल में छह अन्य कर्म-प्रकृतियों का भी बंध होता है।उनसे जीवन के विभिन्न पक्ष निर्धारित होते है। उदाहरणार्थ- आयुष्य के साथ जाति, गति, स्थिति, अवगाहना, प्रदेश आदि का भी बंध होता है। . जाति नामकर्म से निश्चित होता है कि जन्म लेने वाला एकेन्द्रिय होगा या पंचेन्द्रिय।
गति नामकर्म से यह निश्चित होता है कि प्राणी नरक गति में जायेगा या स्वर्ग में। स्थिति नाम कर्म से जीवन की कालावधि निश्चित होती है। अवगाहना नाम कर्म से औदारिक आदि शरीर का निर्माण होता है। प्रदेश नाम कर्म से आयुष्य कर्म के पुद्गलों का परिमाण निश्चित होता है।
अनुभाग नाम कर्म से आयुष्य कर्म के पुद्गलों के विपाक (फल दान शक्ति) का निर्धारण होता है।
आयुष्य कर्म के उदय का पहला क्षण नये जीवन का पहला क्षण है। उसके साथ ही जाति, गति नामकर्म का उदय प्रारंभ हो जाता है। ये आयुष्य के सहचारी हैं। आयुष्य के उदय के साथ उनका उदय और विराम के साथ उनका भी विराम हो जाता है।
कर्म-बंध के क्षण में जाति आदि नामकर्म का निधत्त अथवा निषिक्त होता है। इसलिये आयुष्य का फल विभिन्न प्रकार का बन गया। जैसे-जाति नाम निषिक्तआयुष्य आदि। क्रिया और पुनर्जन्म
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