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नया जन्म लेना पड़ता है, यही तथ्य पुनर्जन्म का मूलाधार है। 2 पूर्व पर्याय में जो आत्मा है, वही उत्तर पर्याय में होती है। ' आत्मा का विनाश नहीं होता, केवल रूपान्तर होता है, यही पुनर्जन्म है। आचारांग नियुक्ति में 'लोक' शब्द का अर्थ 'भव' पूर्व जन्म के संदर्भ में भी लिया है। आत्मा का अस्तित्व है, वह लोक में भव-भ्रमण कर रही है, क्योंकि अतीत के जन्मों में क्रिया द्वारा कर्म बन्ध क्रिया था । क्रिया द्वारा, पुरुषार्थ द्वारा कर्मों को तोड़ा जा सकता है। क्रियावाद वस्तुतः बन्धन- - मुक्ति का पुरुषार्थ है।
जैनदर्शन में पुनर्जन्म
तर्क होता है, एक ओर आत्मा को अजन्मा, अविनाशी, नित्य कहा है दूसरी ओर जन्म-मरण धर्मा सिद्ध करने का प्रयत्न किया जा रहा है। यह विसंगति क्यों ? यदि आत्मा वस्तुतः अविनाशी है तो ऐसी स्थिति में पुनर्जन्म का आधार क्या होगा ? इसका समाधान यह है कि पुनर्जन्म का कारण कर्म है। कर्म-भोग के लिये पुनर्जन्म है। कर्मशब्द में गर्भित अन्तर्रहस्य को समझने के लिये दृश्यमान जागतिक व्यवस्था पर भी दृष्टिपात करना अपेक्षित है। हमारा दृश्य जगत् परस्पर विरोधी धर्मवाले पदार्थों के पारस्परिक संयोग का परिणाम है। एक तत्त्व वह है जिसमें ज्ञान हैं, इच्छाएं हैं, सुख-दुःख की अनुभूति है। दूसरा तत्त्व वह भी है जो इन सब गुणों से रहित है। प्रथम सचेतन (जीव ) और दूसरा अचेतन (अजीव) कहलाता है। दोनों का शुद्ध रूप अप्रत्यक्ष है। दृश्यमान जगत् में जीव संश्लिष्ट या विश्लिष्ट अजीव तथा अजीव संश्लिष्ट जीव का ही प्रत्यक्ष होता है। यही कारण है कि जैनदृष्टि में दृश्य जगत् शुद्ध द्रव्य न होकर दो द्रव्यों का विकार हैं।
सचेतन-अचेतन दोनों पदार्थ सक्रिय हैं। उनमें अपनी-अपनी क्रिया होती रहती हैं। दोनों का अपना स्वभाव है। समान गुण-धर्मवाले के संयोग से विकार पैदा नहीं होता। विकार वहां होता है जहां विजातीय सम्बन्ध स्थापित होता है। पारस्परिक क्रिया के फलस्वरूप अचेतन में विकार उत्पन्न होता है किन्तु वह अपनी ओर से प्रतिक्रिया नहीं करता । सचेतन तत्त्व की विशेषता है कि वह विजातीय द्रव्य के संयोग से प्रतिक्रिया करता है। निष्कर्षतः सचेतन के लिये अचेतन विजातीय हैं।
अचेतन संयोग और तज्जन्य विकार रूप कार्य को दार्शनिक भाषा में 'कर्म कहा है। राग-द्वेष से युक्त संसारी जीव में प्रतिसमय परिस्पंदनात्मक क्रिया होती रहती है, उससे अचेतन द्रव्य आकर्षित होकर आत्मा के साथ संश्लिष्ट हो जाता है और एक निश्चित अवधि के पश्चात् अपना फल देता है। उसके कारण अच्छी-बुरी योनियों में
अहिंसा की सूक्ष्म व्याख्याः क्रिया
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