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173.भगवती भाष्य; 141-142 174.वही, 1/145 175.वही; 1/143-146 176.स्थानांग वृत्ति, पत्र; 39 177.तत्त्वार्थवार्तिक; 6/5 178.तत्त्वार्थ सूत्र, सर्वार्थ सिद्धि; 6/6 179.तत्त्वार्थ सूत्र, सर्वार्थ सिद्धि; 6/6 पृ.12 179.(अ) तत्त्वार्थ सूत्र, सर्वार्थ सिद्ध, 6/6 180.तत्त्वार्थवार्तिक; 6/5
अपूर्वाधिकरणोत्पादनात्प्रात्ययिकी क्रिया। 181.स्थानांग; 2/60 की टीका
सामन्तोवणिवाइया चेव त्ति समन्तात् - सर्वत उपनिपातो - जनमीलकस्तस्मिन् भवा
सामन्तोपनिपातिकी। 182.राजवार्तिक; 6/5 पृ. 510 183.श्लोकवार्तिक; 6/5 पृ.445 184.तत्त्वार्थसिद्धि, सू; 6 पृ. 12 185.सर्वार्थसिद्धि, सू; 6 पृ.322 186.स्थानांग वृत्ति, पत्र; 39 187. तत्त्वार्थवार्तिक; 6/5 188.स्थानांग वृत्ति, पत्र; 39 189.तत्त्वार्थ वार्तिक; 6/5
स्व हस्त गृहीतेनैवाजीवेन जीवं मारयति सा अजीवस्वाहस्तिकी। 190. तत्त्वार्थ वार्तिक; 6/5 191.श्लोक वार्तिक; 6/5 192.स्थानांग; 2/60
राजादि समादेशाद्यदुदकस्य यन्त्रादिभिर्निसर्जनं सा जीव निसर्जनं सा जीवनैसृष्टिकी त्ति
अथवा गुर्बादौ जीवं-शिष्यं पुत्रं वा निसृजतो ददत: एका। 193.तत्त्वार्थवार्तिक; 6/5
क्रिया के प्रकार और उसका आचारशास्त्रीय स्वरूप
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