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अभाव में प्रत्याख्यान का यथावत् पालन नहीं हो सकता । इस अपेक्षा से अज्ञानी का प्रत्याख्यान दुष्प्रत्याख्यान है | 128
जाचार्य ने इस तथ्य को और अधिक स्पष्ट किया है। उन्होंनें लिखा- जीव अजीव का अज्ञाता मिथ्यादृष्टि है। मिथ्यादृष्टि का प्रत्याख्यान अज्ञान की अपेक्षा दुष्प्रत्याख्यान है। उन्होंनें इस संदर्भ में अनेक आगमिक उदाहरण भी प्रस्तुत किये हैं। 1 29
प्रत्याख्यान की प्रथम अर्हता सम्यग् दर्शन है। जीव- अजीव की विज्ञप्ति हु बिना सम्यग्-दर्शन उपलब्ध नहीं होता। सम्यग् दर्शन सोपान है। उसके बिना व्यक्ति मुनि की भूमिका तक नहीं पहुंच सकता। तीन करण, तीन योग से हिंसा आदि का त्याग करना सर्वविरति की भूमिका है। उपर्युक्त तथ्यों को निम्नांकित चार्ट से भी समझा जा सकता है
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दुष्प्रत्याख्यान
मिथ्यादर्शनी के तीन करण, तीन
योग से त्याग का फलित है
दुष्प्रत्याख्यान
मूल गुण प्रत्याख्यान
सर्व मूलगुण प्रत्याख्यान सर्व प्राणातिपात विरमण
सुप्रत्याख्यान
सम्यग्दर्शनी के तीन करण,
योग से त्याग का फलित है
सुप्रत्याख्यान
सर्व मृषावाद विरमण
सर्व अदत्तादान विरमण
सर्व मैथुन विर
सर्व परिग्रह विरमण
प्रत्याख्यान के प्रकार
गौतम - भंते! प्रत्याख्यान के कितने प्रकार प्रज्ञप्त हैं ? 130
महावीर - मूलगुण प्रत्याख्यान और उत्तर गुण प्रत्याख्यान के भेद से दो प्रकार हैं।
प्रत्याख्यान
उत्तरगुण प्रत्याख्यान
देश मूलगुण प्रत्याख्यान
स्थूल प्राणातिपात विरमण
ך
-
तीन
स्थूल मृषावाद विरमण
स्थूल अदत्तादान विरमण
स्थूल मैथुन विरमण
स्थूल परिग्रह विरमण
अहिंसा की सूक्ष्म व्याख्याः क्रिया