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(1) आरम्भिकी क्रिया (Damage to the envirorment such as digging earth, tearing leaves etc.)
आरम्भ का तात्पर्य है - प्रवृत्ति । शब्द कोष में इसके अनेक निर्वचन हैं। 94 (ग) उदाहरणार्थ - प्रस्तुति, शुरू, कार्य, प्रयत्न, अभिमान, वध, उत्पत्ति, उपक्रम, तीव्रता आदि । धर्म ग्रंथों में आरम्भ का अर्थ हिंसा (Violence ) है। प्रज्ञापना में लिखा है
आरंभ - पृथिव्याद्युपमर्दः, उक्तं चः 'संरभो संकप्पो परितावकरो भवे समारम्भो ।
आरंभो उद्दवओ सुद्धनयानं तु सव्वेसिं अथवा 'आरंभ: प्रयोजनं कारणं यस्याः सा आरम्भिकी ॥
अर्थात् जिसमें पृथ्वी आदि जीवों का उपमर्दन अथवा उनके प्रति उपद्रव किया जाता है, वह क्रिया आरम्भिकी कहलाती है।” अभयदेवसूरि ने आरम्भ का अर्थ जीवों का उपघात या उपद्रवण किया है। उनकी दृष्टि में इस शब्द का प्रयोग सामान्यतः प्रत्येक आश्रव की प्रवृत्ति के लिये किया जा सकता है। " भगवती में 'आरम्भ शब्द का प्रयोग अविरति और योग आश्रव के संदर्भ में हुआ है। 7
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वैदिक काल में आरम्भ के स्थान पर आलम्भ शब्द मिलता है। उस समय 'आलम्भ' का तात्पर्य पशुबली था। 'रलयोरेकत्वम् ' प्राकृत व्याकरण के इस सूत्र से 'ल' के स्थान पर 'र' होने से उत्तरवर्ती साहित्य में आरम्भ का प्रयोग हिंसा के अर्थ में होने लगा। चूर्णिकार ने आरम्भ का अर्थ अज्ञान, कषाय, नो कषाय अथवा असंयम किया है। " आरम्भ से होने वाली क्रिया आरम्भिकी क्रिया है। यह हिंसा सम्बन्धी क्रिया है । " उपर्युक्त तथ्य को पुष्ट करते हुए श्लोकवार्तिक में भी कहा है कि छेदन आदि क्रिया में आसक्त अथवा दूसरों की हिंसा सम्बन्धी कार्यों में प्रहर्ष चित्त आरंभिकी क्रिया है । 100 आयारो के अनुसार 'आरंभ' क्रिया का पर्यायवाची शब्द है । 101 अशुभयोगजन्य असत् प्रवृत्ति आरम्भिकी क्रिया है। छठे गुणस्थानवर्ती प्रमत्त संयत अशुभयोगजन्य प्रवृत्ति के कारण ही आरंभी कहलाते हैं। यही कारण है कि मुनि बनने के लिए सभी क्रियाओं, आरंभों को जानना और छोड़ना अनिवार्य है। 102 आरंभिकी क्रिया के दो प्रकार हैं
(1) जीव आरम्भिकी, (2) अजीव आरम्भिकी।
क्रिया के प्रकार और उसका आचारशास्त्रीय स्वरूप
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