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दशवैकालिक : इतिहास और परम्परा कहती-मनाक् (कुछ) आभास होता है।
यथासमय उसने एक पुत्र को जन्म दिया। बारह दिन पूर्ण होने पर उसका नामकरण हुआ। गर्भावस्था में लोगों के पूछने पर वह कहती-मनाक् (कुछ) आभास होता है, इसलिए उसका नाम 'मनक' रखा।
___ मनक आठ वर्ष का हो चुका था। एक बार उसने अपनी मां से पूछा-'मां मेरे पिता कौन है?' उसने कहा-'तेरे पिता प्रव्रजित हो गए।'
वह अपने पिता की खोज में घर से निकल पड़ा।
उन दिनों मुनि शय्यंभव चम्पापुरी में विहार कर रहे थे। मनक वहां पहुंचा। वह गांव के बाहर ठहरा । मुनि शौचार्थ बाहर जा रहे थे। मनक ने उन्हें देख वन्दना की। बालक को देखते ही मुनि के मन में प्रेम उमड़ पड़ा। बालक का मन भी प्रेम से गद्गद हो गया। मुनि ने पूछा-'तुम कहां से आये हो?'
मनक-राजगृह से। मुनि-किस के पुत्र और पौत्र हो? यहां क्यों आये हो?
मनक–मेरे पिता का नाम शय्यंभव है। उन्होंने दीक्षा ले ली। मैं उनसे मिलने आया हूं। मैं दीक्षा लेना चाहता हूं। क्या आप उन्हें जानते हैं?
मुनि-हां, मैं उन्हें भलीभांति जानता हूं। वे मेरे अभिन्न मित्र हैं। तुम मेरे पास दीक्षा ले लो।
मनक-हां, ऐसा ही करूंगा।
मुनि अपने स्थान पर आये। कुछ सोचा और उसे दीक्षित कर दिया। उन्होंने अपनी योगदृष्टि से देखा कि इसकी आयु केवल छह मास की शेष रही है। इतने अल्पकाल में इसे विधिपूर्वक सारे शास्त्रों का अध्ययन नहीं कराया जा सकता। इसलिए मुझे ऐसा प्रयत्न करना चाहिए कि इस अल्प अवधि में ही सम्यक् ज्ञान-दर्शन-चारित्र का पूर्ण अनुष्ठान कर सके।
ऐसा विचार कर आगम के पूर्व भाग से आवश्यक अंग उद्धृत कर एक शास्त्र रचा। उसके दस अध्ययन हुए और उसकी पूर्ति विकाल वेला में हुई, इसलिए उसका नाम 'दशवैकालिक' सूत्र रखा।' यह स्वतंत्र रचना नहीं है। सारे अध्ययन अन्यागमों से संकलित किए गये हैं। इसमें भी दो पक्ष रहे हैं। एक पक्ष की यह मान्यता रही है कि आत्मप्रवाद (सातवें) पूर्व से धर्मप्रज्ञप्ति १. दशवैकालिक नियुक्ति, गाथा, १४।