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________________ आगम- सम्पादन की यात्रा ६. वर्गीकृत आगम ग्रंथमाला - आगमों के वर्गीकृत और संक्षिप्त संस्करण । ५६ इस आधार पर कार्य प्रारंभ हुआ । हमारे सामने सबसे बड़ी समस्या थी पाठ-निर्धारण की। जितने हस्तलिखित आदर्श होते, उतने ही पाठान्तर सामने आ जाते। यह भी ध्यान में आया कि अर्थ - निश्चय और पौर्वापर्य की निश्चित बिना पाठ - निर्धारण का कार्य सुगम नहीं हो सकता । हमने पाठ-निर्धारण की इयत्ता यह मानी कि प्राचीनतम आदर्शों से पाठ का मिलान किया जाए और आगमों के पौर्वापर्य की संगति करते हुये किसी एक निश्चय पर पहुंचा जाए और फिर विशेष विमर्श और चिन्तन के द्वारा पाठ का निर्धारण किया जाए । उन्हीं वर्षों में आचार्यप्रवर ने लम्बी यात्राएं करने का निर्णय लिया । यात्राएं चलतीं, आगम-कार्य भी साथ-साथ चलता । कभी कोई विघ्न आया हो, ऐसा अनुभव नहीं हुआ । आचार्यप्रवर की सतत प्रेरणा, मुनि नथमलजी का सतत योग- इन दोनों की संयुति ने कार्य को गति दी और धीरे-धीरे अनेक आगम रूपायित होते गए । जर्मन के विद्वान् डॉ. रोथ (उस समय नालंदा विश्वविद्यालय के डायरेक्टर) ने एक वर्ष में यहां किये गये आगम- संपादन कार्य का अवलोकन किया और आश्चर्य व्यक्त करते हुए तेरापंथ के श्रमण- श्रमणी परिवार की कर्त्तव्य-निष्ठा का महत्त्वपूर्ण अंकन किया । ईसवी सन् ५८-५९ की बात है । आचार्यप्रवर कलकत्ता की यात्रा कर रहे थे। राजगृह में कुछ दिन ठहरे। वैभारगिरि की अधित्यका में बैठकर आचार्यश्री ने अपने आगम-पाठ संपादन का संकल्प दोहराया। उस पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुये जैन धर्म-दर्शन के बहुश्रुत विद्वान् श्रीदलसुख मालवणिया ने 'श्रमण' (मासिक पत्र) में 'आगम प्रकाशन और आचार्य तुलसी' शीर्षक के अंतर्गत लिखा- 'हम आचार्यश्री के इस सत्संकल्प की बार-बार प्रशंसा किये बिना नहीं रह सकते। हमें उनके इस सत्संकल्प की पूर्ति के विषय में तथा उनके इस दिशा में किए जाने वाले प्रयत्नों के
SR No.032420
Book TitleAgam Sampadan Ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni, Rajendramuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2011
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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