SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 65
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आगम- सम्पादन की यात्रा आगम-कार्य की गतिविधि से उन्हें अवगत कराया और सम्पन्न - प्राय दशवैकालिक सूत्र का कार्य उनके सामने रखा। उन्हें यह जानकार अत्यधिक प्रसन्नता हुई कि आगमिक शब्दों का अर्थ अन्यान्य दूसरे 'आगमों' के आधार पर ही हो ऐसा प्रयास किया जाता है और उसमें काफी सफलता भी मिली है। इससे एक तो शब्द की आत्मा सही रूप से पकड़ी जाती है और दूसरे अन्य आगमों का पारायण भी सहजतया हो जाता है। डॉ. नथमलजी ने कहा- 'मैं अपने विद्यालय में भी इसी माध्यम से विद्यार्थियों को पढ़ाता हूं और इससे अर्थ करने में सुगमता होती है। उन्हें एक-एक शब्द, जिसकी अथ से इति तक छानबीन होती है, की जानकारी दी गई। उन्हें बहुत आश्चर्य हुआ । अपने अल्पकालीन प्रवास में उन्होंने कई बार कहा - 'आचार्यजी ! हम यह नहीं जानते थे कि यह आगम-कार्य इतनी दृढ़ता और निष्ठा से हो रहा है । हमने यह मान लिया था कि जिस प्रकार अन्यान्य स्थानों में कार्य होता है उसी प्रकार यहां भी होता होगा । मेरी ही नहीं, परन्तु मेरे साथियों की भी यही धारणा थी, 1 परन्तु कार्य के साक्षात्कार से हमें यह मानना पड़ता है कि कार्य पूर्ण परिश्रम व प्रामाणिकता से हो रहा है। यदि मुझे यह पहले मालूम पड़ता तो मैं कभी का आपके पास आ जाता और इस कार्य में हाथ बंटाता । आपका यह कार्य जब लोगों के समक्ष आएगा तक निःसन्देह मैं कह सकता हूं कि उनकी कई बद्धमूल धारणाएं नष्ट हो जाएंगी। आज तक कहीं इस प्रकार का परिश्रम हुआ हो, मैं नहीं जानता। आप इस दशवैकालिक को शीघ्र पूरा कर दें, जिससे आगामी वर्ष हम अपने विद्यापीठ में इसको पाठ्यक्रम में रख सकें। इस एक सूत्र का सांगोपांग कार्य विद्यार्थी - अन्वेषकों को एक नई दिशा देगा और अन्य आगमों के लिए आधारस्थल बनेगा।' इसी प्रकार और भी बहुत-सी चर्चाएं हुईं। मुनिश्री नथमलजी ने उन्हें कई शब्दों की टिप्पणी सुनाई। जैसे-जैसे कार्य की जानकारी बढ़ती वैसे-वैसे वे आनन्दविभोर हो उठते । उन्होंने कई बहुमूल्य सुझाव भी दिये और कहा कि इस कार्य को सभी दृष्टियों से पूर्ण करने के लिए आपको बौद्ध-साहित्य का भी सांगोपांग पारायण करना चाहिए, अन्यथा यह कमी विद्वानों को अखरे बिना नहीं रहेगी । ५२ मुनिश्री नथमलजी के द्वारा यह कहे जाने पर कि प्रत्येक साहित्य की उपलब्धि हमारे लिए सहज नहीं होती तब डॉ. नथमलजी ने कहा- 'आप वैशाली पधारिये । वहां बौद्ध व जैन - साहित्य का अच्छा संकलन है। वहां आने I
SR No.032420
Book TitleAgam Sampadan Ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni, Rajendramuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2011
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy