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आगम-सम्पादन की यात्रा गोल्ल देश में ब्राह्मण का हनन गर्हित-कर्म माना जाता था।' मार्ग
विभिन्न स्थानों में विभिन्न प्रकार के मार्ग थे। यह मानव का स्वभाव है कि जहां और जिस वायुमंडल में वह रहता है उसी के अनुसार वह अपनी सुखसुविधाएं जुटा लेता है। नियुक्तिकार ने फलकमार्ग, लतामार्ग, आन्दोलनमार्ग, वेत्रमार्ग, रज्जुमार्ग, दवनमार्ग, बिलमार्ग, पाशमार्ग, कीलकमार्ग, अजमार्ग, पक्षिमार्ग, छत्रमार्ग, जलमार्ग और आकाशमार्ग-इन चौदह मार्गों का उल्लेख किया है।
१. फलकमार्ग-जहां कीचड़ आदि अधिक हो जाता था अथवा गढ़े अधिक होते थे, तब उसे पार करने के लिए लकड़ी के फलक बिछाए जाते थे। लोग इन फलकों से आवागमन करते थे।
२. लतामार्ग-विशेषतः यह मार्ग जंगलों में होता था जहां पथिक सघन लताओं को पकड़कर इधर-उधर आते जाते थे।'
३. आन्दोलन मार्ग-यह संभवतः झूलने वाला मार्ग रहा हो अथवा झूले के सहारे व्यक्ति इस पार से उस पार पहुंच जाता हो। विशेषतः यह मार्ग दुर्ग आदि पर बनाया जाता था जहां खाइयां आदि झूल कर पार की जाती थीं। चूर्णिकार के अनुसार व्यक्ति वृक्षों की शाखाओं को पकड़कर झूलते और इसी प्रकार दूसरे-दूसरे वृक्षों की शाखाओं को पकड़ते हुए पार हो जाते थे।६।।
___४. वेत्रमार्ग-यह मार्ग नदियों को पार करने में सहायक होता था। जहां नदियों में बेंत की लताएं सघन होती थीं वहां पथिक उन लताओं का अवष्टम्भ लेकर एक किनारे से दूसरे किनारे पर पहुंच जाता था। जिस नदी में 'बेंत' की १. जो पुण पुरिसं मारेति गोल्लविसए ब्राह्मणघातक इव पुरिसघातओवि
गरिहिज्जति-सूत्रकृ. चूर्णि, पृ. ३५७। २. फलगलयदोलणवित्तरज्जुदवणबिलपासमग्गेय। खीलगअयपक्खिपहे
छत्तजलाकासदव्वंमि (गा. १०७)। ३. फलकमार्गः यत्र कर्दमादिभयात् फलकैर्गम्यते १।११ वृ. पत्र १९८, चूर्णि पृ.
२३९। ४. लतामार्गस्तु यत्र लतावलम्बनेन गम्यते-१।११ वृ. पत्र १९८, चूर्णि पृ. २४० । ५. आन्दोलनमार्गोऽपि यत्रान्दोलनेन दुर्गमतिलंघ्यते १।११ वृ. पत्र १९८ । ६. चूर्णि पृ. २३९,२४० ।