SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 142
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उत्तराध्ययनगत देश, नगर और ग्रामों का परिचय १२९ है । उत्तरापथ के घोड़े के व्यापारी बनारस आकर अपने घोड़े बेचते थे । उत्तराध्ययन के चौबीसवें अध्ययन में बनारस के दो ब्राह्मण भाई जयघोष और विजयघोष का जीवनवृत्त सन्दृब्ध है । एक बार जयघोष गंगा पर स्नान करने गया। वहां उसने देखा कि एक सर्प मेंढक को निगल रहा है और एक मार्जार सर्प को खाने के लिए तत्पर है । ऐसी अवस्था में भी चींचीं करते हुए मेंढक को सर्प खा रहा है और तड़फड़ाते हुए सर्प को मार्जार खा रहा है। यह दृश्य जयघोष के वैराग्य का निमित्त बना । उसने सोचा- 'अहो ! संसार असार है । सबल निबल को निगल रहा है। संसार में भी प्राणी एक दूसरे को निगले जा रहे हैं। यहां तो धर्म ही एक शरण है।" मिथिला यह विदेह (तिरहुत) देश की राजधानी थी। मिथिला चम्पा (भागलपुर के पास वर्तमान में नाथनगर) साठ योजन की दूरी पर थी । सुरुचि जातक में उसके विस्तार का पता लगता है । एक बार बनारस के राजा ने ऐसा निश्चय किया कि वह अपनी कन्या का विवाह एक ऐसे राजपुत्र से करेगा जो 'एकपत्निव्रत' को अंगीकार करेगा । मिथिला के कुमार सुरुचि के साथ विवाह की बात चल रही थी । 'एकपत्निव्रत' की बात सुनकर वहां के वरिष्ठ व्यक्तियों ने कहा- 'मिथिला नगरी का विस्तार सात योजन का है। राज्य का सारा विस्तार तीन सौ योजन का है । हमारा राज्य बहुत बड़ा है। ऐसे राज्य के राजा के अन्तःपुर में सोलह हजार रानियां अवश्य होनी चाहिए ।' ३ बौद्ध-ग्रन्थों में वज्जियों के आठ कुलों का नामोल्लेख हुआ है, उनमें वैशाली के लिच्छवी और मिथिला के विदेह मुख्य 1 - मिथिला का दूसरा नाम 'जनकपुरी' था। जिनप्रभसूरि के समय मिथिला नगरी 'जगइ' के नाम से प्रसिद्ध थी। यहां जैन श्रमणों की एक शाखा ‘मैथिलिया' कहा जाता था । ' भगवान् महावीर ने यहां छह चतुर्मास बिताए । १. उत्तरा . टीका. (नेमीचन्द्रीय) पत्र ३०५ । २. ३. ४. ५. ६. उत्तराध्ययन, ९।४ । भारतीय संस्कृति और उसका इतिहास, पृ. २७२ । विविध तीर्थ, पृ. ३२ । कल्पसू, पृ. २३१ । कल्पसूत्र, पृ. १२३ ।
SR No.032420
Book TitleAgam Sampadan Ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni, Rajendramuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2011
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy