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________________ उत्तराध्ययनगत देश, नगर और ग्रामों का परिचय १२७ वर्तमान में अनेक नगरों के वर्णन में स्वतंत्र ग्रन्थ लिखे जा चुके हैं, फिर भी उनमें अन्वेषणीय कुछ न कुछ अवशेष रह ही जाता है। खोज के इस अनन्त समुद्र में समय-समय पर नए तथ्य उपलब्ध होते रहे हैं और यही उपलब्धि एषणा को सद्यस्क बनाए रखती है। वाणारसी (बनारस) सोलह महाजनपदों में काशी' का उल्लेख हुआ है। वाणारसी काशी की राजधानी थी। पाणिनी व्याकरण के अनुसार 'वर' और 'अनस' शब्द से 'वाणारसी' की उत्पत्ति बताई जाती है। ब्राह्मण लोग 'वरुण' और 'असि' नामक झरनों से इसकी संगति करते हैं। ग्रीक लोगों को भी बनारस का किञ्चित् परिचय था। उनका प्रसिद्ध भूगोलवेत्ता टोलमी Ptolemy काशी को 'कस्सिडिया' नाम से उल्लिखित करता है। उसके अनुसार पहले काशी की राजधानी भी इसी नाम की थी। जब बिच्छु लोगों ने प्राचीन काशी नगर का विध्वंस किया, तब प्राचीन नगर के ध्वंसावशेषों से किञ्चित् हटकर वाराणसी बसाई गई। इसे 'ओरनिस' (Aornis) अथवा 'अवरनस' (Avernus) नाम से परिचित करते हैं। मुगलों ने इसका नाम 'बनारस' रखा।३ बनारस गंगा नदी के तट पर बसा हुआ एक समृद्धशाली नगर था। बौद्ध ग्रन्थों के अनुसार इसका विस्तार ८५ वर्गमील में था। भगवान् महावीर तथा महात्मा बुद्ध यहां अनेक बार आए थे। यह विद्या का बहुत बड़ा केन्द्र था। वैदिक तीर्थों में इसे पूर्व का परम तीर्थ माना है। जैन-ग्रन्थों के अनुसार तीर्थंकर सुपार्श्व तथा तीर्थंकर पार्श्वनाथ की जन्मभूमि भी वही है। पार्श्वनाथ की जन्मभूमि ‘भेलुपुर' और तीर्थंकर सुपार्श्व की जन्मभूमि ‘भदैनी' ये दोनों बनारस के ही अंग थे। जिनप्रभसूरि के अनुसार बनारस चार भागों में बंटा हुआ था१. देव वाराणसी २. राजधानी वाराणसी ३. मदन वाराणसी और ४. विजय वाराणसी। बनारस बौद्ध-दर्शन का प्रचार क्षेत्र भी रहा था। उसके आसपास के ध्वंसावशेष इसी बात के साक्षी हैं। यह एक बहुत बड़ा व्यापारिक केन्द्र था। १. उत्तराध्ययन, २५।३। २. कामताप्रसाद जैन-भगवान पार्श्वनाथ (पूर्वार्द्ध) पृ. ९४ । ३. एसियाटिक रिसर्चेज भाग ३, पृ. १९२। ४. भारत के प्राचीन जैनतीर्थ, पृ. ३६ ।
SR No.032420
Book TitleAgam Sampadan Ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni, Rajendramuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2011
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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