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की क्षमता है, इसलिए वह नये अविष्कार करता है, जीवन के छिपे रहस्यों को अनावृत्त करता है। स्वस्थ समाज, स्वस्थ व्यक्तित्व के लिए वह रचनात्मक निर्माण कार्य सम्पादित करता है और विकास की अनंत संभावनाएं लेकर चलता है पर ऐसा होता तभी है जब मनुष्य अपनी शक्तियों को जागरुकता के साथ सही दिशा में संयोजित करें। ___'सागरवरगंभीरा' का यह प्रयोग व्यक्तित्व निर्माण का महत्तम प्रयोग कहा जा सकता है। चारित्र विशुद्धि का यह प्रयोग चारित्रिक गुणों का उत्कर्ष करता हुआ परम समाधि का मार्ग प्रशस्त करता है।
इंग्लैण्ड की एक महिला का नाम है-बार्बराकार्टलेण्ड। सुना है बहुत ही प्रेरक और विचित्र है उसकी सफलता की कहानी। कहते हैं वह गरीब परिवार में पैदा हुई, दसवीं पास की। लेखन की रुचि जागृत हुई। उसने छह सौ पुस्तकें लिखीं, उसमें चार सौ नवलकथाएं लिखी। सफलता का एक-एक पग पार करती हुई वह एक दिन सबसे अधिक पैसा कमाने वाली महिला-लेखिका के रूप में प्रख्यात हो गई। सन् १६६५ में ब्रिटेन की महारानी द्वारा सम्मानित होने का उसे गौरव प्राप्त हुआ। उसने अपनी आत्मकथा लिखी है-आइ रीच फॉर स्टॉर्स। उसके आधार पर विद्वानों ने बार्बरा की सफलता के कारणों का विश्लेषण करते हुए लिखा है-उसका जीवन सात्विक है। उसके पास ध्येय है, रस है, उसने 'स्व' को पहचाना है। स्व को केन्द्र बनाया है। वह कहती है-“यदि हमारा केन्द्र मजबूत, विशाल और स्पष्ट होता है तो परिधि भी विशाल बन जाती है। ऐसी स्थिति में संसार की समृद्धि और वसुधा का वैभव उसके पास मंडराने लगता है। अतः अन्तदर्शन द्वारा 'स्व' की अनुभूति करो। फलक को विशाल बनाओ। तुम और तुम्हारा जीवन अनेकों के लिए प्रेरणा स्रोत बन जायेगा।"
निष्कर्षतः कहा जा सकता है कि 'स्व' की अनुभूति के अनेक साधनों में लोगस्स-स्तव का भी अपना विशिष्ट स्थान है। इसमें जो मंत्राक्षर हैं वे अनंत शक्ति के स्रोत हैं क्योंकि अनंत शक्तिपुञ्ज तीर्थंकरों की स्तुति में निर्मित विशिष्ट रचना-धर्मिता के गुणों से वे निष्पन्न हैं। उन्हें चेतन करने की अपेक्षा है। प्रयोगात्मक भूमिका पर परिष्कृत होकर ही वे चेतन बन, प्राणवान बनते हैं। अतः कहा जा सकता है कि मंत्र सूक्ष्म रूप होते हैं, बीज रूप होते हैं जिससे बाह्य वस्तु-रूपी वृक्ष उत्पन्न होता है तो दूसरी ओर लोकोत्तर सुख के द्वार भी खुलते हैं। इसी लोकोत्तर सिद्धि के लिए 'सागरवरगंभीरा, सिद्धा सिद्धिं मम दिसंतु' को सफलता का सशक्त सोपान कहा जा सकता है।
५६ / लोगस्स-एक साधना-२