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ट्रेन के जिस डिब्बे में उनका रिजर्वेशन था, वही डिब्बा सबसे ज्यादा क्षतिग्रस्त हुआ। उस डिब्बे का कोई भी यात्री बच नहीं सका। सबके सब मृत्यु के ग्रास बन गये । उसके पश्चात उस अद्भुत शिशु ने ऐसी-ऐसी बातें बताई जिनकी कल्पना ही नहीं की जा सकती।
जिसके पास तीसरा नेत्र होता है, उसकी अतीन्द्रिय चेतना जागृत होती है । अवधि ज्ञान तो बहुत आगे की बात है । यद्यपि चेतना सम्पूर्ण शरीर में व्याप्त रहती है, ध्यान योगी हृदय क्षेत्र में उसके सूक्ष्म संस्थान का अनुभव करते हैं। आत्म ज्योति का अनुभव भृकुटि मध्य में तथा शीर्षस्थ में भी करते हैं ।
आज्ञा चक्र का महत्त्व
दर्शन-केन्द्र (आज्ञा-चक्र) पर ऊर्जा स्रोत अत्यन्त गोलार्ध के साथ घूमता है । जगत् के प्रत्येक पदार्थ गोल और वर्तुलमय है। सूर्य, चन्द्र, नक्षत्र, तारे भी गोल हैं, रोटी, चकला, बर्तन सब गोल हैं, इतना ही नहीं हमारी भावों की तरंगें भी गोल हैं । क्रोध, मान, माया व लोभ की तरंगें भी गोल हैं।
जानने की बात यह है कि इन गोलाईयों के घुमाव, घुमने की प्रतिक्रियाएं, उनके घुमावों की प्रक्रिया और उसके परिणाम क्या हैं, कैसे हैं? सामान्य पदार्थ और क्रोध आदि भाव तरंगों में ये घुमाव काउन्टर क्लोकवाइज अर्थात् एन्टी क्लोकवाइज होते हैं। सत्-जागरण के लिए परमसत् के प्रति किया जाता स्मरण, स्तवन आदि श्रद्धा, ज्ञान और भेद - विज्ञान के द्वारा तरंगें क्लोकवाइज घूम जाती हैं। ऐसी स्थिति में क्रोध करुणा और क्षमा के रूप में रूपान्तरित होता जाता है। आज्ञा चक्र भावना केन्द्र के साथ आभामंडल का भी मुख्य केन्द्र है । महापुरुषों की करुणा कायोत्सर्ग के समय परम शांतवाहिता के रूप में देह रश्मियों के साथ किरणोत्सर्ग करती हैं, उसे अनुग्रह कहा जाता है । इसी कारण महापुरुषों के चरणों में नमस्कार किया जाता है । यह अनुग्रह भी मंडलाकार होता है । यह जब चारों तरफ क्षेत्रान्वित होकर फैलता है तब उसे अवग्रह मंडल कहा जाता है ।
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धर्म संग्रह में अवग्रह की व्याख्या करते हुए कहा गया है कि गुरु के आसन के आस-पास साढ़े तीन हाथ जगह अवग्रह कहलाती है। किसी को इस अवग्रह में प्रवेश करना हो तो 'अणुजाणह' शब्द कहकर उसकी आज्ञा लेनी होती है । यह नाप गुरु के आत्म शरीर प्रमाण चारों तरफ की मित नाप वाली भूमि का माना जाता है।
गुरुमंडल में प्रवेश से पूर्व शिष्य दोनों हाथ आज्ञा चक्र के पास ले जाकर गुरु से आज्ञा मांगता है - हे प्रभो ! मुझे आज्ञा दे मैं आपके अवग्रह आभामंडल में
४८ / लोगस्स - एक साधना - २