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तत्पश्चात ॐ नमो अरहंताणं - प्रथम पद की पहली पंक्ति को बोलता हुआ दायें हाथ को सिर पर स्थिर करता है । ॐ णमो सिद्धाणं - दूसरी पंक्ति को बोलता हुआ हाथ से पूरे मुँह का स्पर्श करता है । ॐ णमो आयरियाणं - तीसरी पंक्ति बोलता हुआ हाथ को सम्पूर्ण वक्षस्थल तथा उदर मार्ग पर घुमाता है । ॐ नमो उवज्झायाणं- चौथी पंक्ति बोलता हुआ दोनों हाथों को भुजाओं के समकक्ष उठाता हुआ शस्त्रास्त्र से सुसज्जित होने की मानसिक मजबुत कल्पना करता है । ॐ नमो लोए सव्व साहूणं' - पांचवीं पंक्ति बोलता हुआ आसन स्थित दोनों पैरों की सुरक्षा की कल्पना करता है ।
एसो पंच... बोलता हुआ आसन के नीचे भूमितल पर सुदृढ़ शिला की कल्पना करता है ।
सव्व पाव...बोलता हुआ आसन के नीचे भूमितल पर सुदृढ़ शीला का किला है दोनों हाथ से चारों तरफ कल्पना करते हुए अंगुली घुमाना ।
मंगलाणं च... बोलता हुआ किले के चारों ओर खाई की कल्पना करना । पढमं हवइ... ... बोलता हुआ किले के ऊपरी भाग पर ढक्कन की परिकल्पना कर दृढ़ इच्छाशक्ति के द्वारा उस कल्पित कोट के अन्दर अपनी जबरदस्त सुरक्षा कर लेता है । ( इसको बोलते हुए हाथ को मस्तक पर रखकर विचार करना कि वज्रमय किले के ऊपर आत्म-रक्षा के लिए वज्रमय ढक्कन है ।
इस तरह के एक निश्चित अभ्यास से व्यक्ति नितान्त अभय व शक्ति संपन्न बन जाता है ।
२. किस महिने में कौन-से तीर्थंकर का कौन-सा कल्याणक
चैत्र
च्यवन कल्याणक
जन्म कल्याणक
दीक्षा कल्याणक केवलज्ञान कल्याणक
निर्वाण कल्याणक
वैशाख
( - सुमरो नित नवकार, पृ. ७८-८० से उद्धृत)
च्यवन कल्याणक
चंद्रप्रभ (कृ. ५) पार्श्व (कृ. ४) ऋषभ (कृ. ८) महावीर ( शु. १३) ऋषभ (कृ. ८)
सुमति ( शु. ११) पद्मप्रभ ( शु. १५) कुंथु ( शु. ३) पार्श्व (कृ. ४)
अजित ( शु. ५ ) संभव ( शु . ५) सुमति ( शु. ६) अनंत ( शु. ५ )
अजित ( शु. १३) अभिनन्दन ( शु. ४) शीतल (कृ. ६) विमल (शु. १२) धर्म ( शु. ७)
परिशिष्ट - १ / १५५