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परिशिष्ट-१
१. श्री वज्रपंजर स्तोत्र
नमस्कार महामंत्र हमारे शरीर एवं आत्मा के लिए एक सक्षम और अजेय आत्म रक्षा कवच है। नित्य प्रातःकाल मंत्र पाठ कर आत्म रक्षा की भावना करने से रोग, दुर्घटना, प्रहार, आकस्मिक आघात से तो रक्षा होती ही है। साथ ही साथ किसी भी प्रकार का भय और उपद्रव नहीं होता। प्राचीन आचार्यों द्वारा विरचित वज्रपंजर स्तोत्र एवं उसकी विधि निम्न प्रकार है
परमेष्ठि नमस्कारं, सारं नवपदात्मकम् । आत्मरक्षाकरं वज्रपंजराभं स्मराम्यहम् ॥१॥ ॐ नमो अरिहंताणं, शिरस्कं शिरसि स्थितम् । ॐ नमो सव्वसिद्धाणं, मुखे मुखपटं वरम् ॥२॥ ॐ नमो आयरियाणं, अंगरक्षातिशायिनी । ॐ नमो उवज्झायाणं, आयुधं हस्तयोर्दृढम् ॥३॥ ॐ नमो लोए सब साहूणं, मोचके पादयोः शुभे । ऐसो पंच णमोक्कारो, शिला वज्रमयीतले ॥४॥ सव्वपावपणासणो, वप्रो वज्रमयो बहिः । मंगलाणं च सव्वेसिं, खादिरांगारखातिका ॥५॥ स्वाहान्तं च पदं ज्ञेयं, पढमं हवइ मंगलं । वप्रोपरि वज्रमयं, पिधानं देह रक्षणे ॥६॥
परिशिष्ट-१ / १५३