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अपने संस्कारों की खोज कर उनका निर्मूलन करते हैं। द्वन्द, वासनाओं, स्मृतियों आदि के संस्कारों को हटाने के लिए चक्रों पर ध्यान, तीर्थंकरों का जप न केवल एक शक्तिशाली अभ्यास है, वरन् यह व्यक्ति के अन्दर सोई हुई प्रतिभा के विकास का भी एक सबल माध्यम बनता है। निष्कर्षतः कहा जा सकता है कि चक्र शारीरिक, मानसिक, वैज्ञानिक, मनोवैज्ञानिक, आचारात्मक, सूक्ष्म, प्रतीकात्मक, पौराणिक, धार्मिक, विकासात्मक, आध्यात्मिक अनेकों दृष्टियों से महत्त्वपूर्ण है, उन पर ध्यान केन्द्रित कर, जप, ध्यान, अनुप्रेक्षा, रंगों के ध्यान आदि करने से हमारे मस्तिष्क, मन, इड़ा एवं पिंगला के कार्यों में संतुलन आता है तथा कुण्डलिनी जागरण की पृष्ठभूमि भी तैयार होती है। संदर्भ
चक्रों का विवेचन-आसन, प्राणायाम, मुद्रा बंध-पृ. ५४५/५५२ का सारांश, तीर्थंकर जप के प्रयोग लोगस्स-एक दिव्य साधना तथा चक्रों पर कषाय विजय एवं महामंत्र की विधियां-एसो पंचणमोक्कारो से संकलित व उधृत।
चक्र और तीर्थंकर जप / १३३