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बिंदु नाद का केन्द्र है। इस केन्द्र का उपयोग वहां उदित होने वाली अतीन्द्रिय ध्वनियों पर एकाग्रता का अभ्यास करने के लिए किया जाता है।
जप
अहँ ध्वनि, महाप्राण ध्वनि, चंद्रमा का ध्यान, चंदेसु निम्मलयरा का जप प्रमुख रूप से इस केन्द्र को जागृत करने के लिए किया जाता है।
सहस्रार चक्र
सहस्रार सिर के शीर्ष पर स्थित है। वास्तव में यह चक्र ही नहीं, बल्कि उच्चतम चेतना का वास स्थान है। सहस्रार को हजार पंखुड़ियों वाले दीप्तिमान कमल के रूप में दर्शाया गया है। कमल के मध्य में शुद्ध चेतना का प्रतीक दीप्तिमान ज्योतिर्लिंग है। जब कुंडलिनी जागती है, तो वह विभिन्न चक्रों से उर्ध्वगमन करती हुई सहस्रार तक जाती है और परमस्रोत में विलिन हो जाती है, जो उसका उद्गम स्थल भी है। इस अवस्था में प्राप्त योगी परम ज्ञान एवं परम आनंद का अनुभव करते हुए जन्म-मृत्यु के परे चला जाता है।
आज्ञा
इड़ा।
पिंगला
मूलाधार
चक्र और तीर्थंकर जप / १३१