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स्वाधिष्ठान चक्र
मेरुदण्ड में मूलाधार से लगभग दो अंगुल ऊपर और ठीक जननेन्द्रिय के पीछे स्वाधिष्ठान चक्र स्थित है । स्वाधिष्ठान का शाब्दिक अर्थ है, 'स्व + अधिष्ठान = अपना आवास' । इस चक्र का प्रतीक गहरे लाल रंग का छः पंखुड़ियों वाला कमल है। केन्द्र में श्वेत अर्द्धचन्द्र है, जो कि अपस् तत्त्व का यंत्र है और इसका बीज मंत्र है 'बं'। इस चक्र में पानी तत्त्व है ।
इस केन्द्र को जागृत करने के लिए रात्रि के आकाश के नीचे काली लहरों से आच्छादित विस्तृत गहरे सागर का मानस दर्शन करें। सागर से उठने वाला ज्वार चेतना के प्रवाह का परिचायक है ।
जप
इस स्थान पर पार्श्वनाथजी का जप किया जाता है और चित्र में दर्शाये गये चक्र में चन्द्राकार के ऊपर जो गोलाकार है उसमें 'णमो अरहंताणं' प्रदक्षिणा के क्रम में अर्थात् फिरता हुआ गोलाकार ' णमो अरहंताणं' इस सप्ताक्षरी महामंत्र का जप व साक्षात्कार करें। इस महामंत्र के एक इसी पद्य का ध्यान दो नेत्र, दो कान, दो नाक और एक मुँह - इन सात स्थानों पर केन्द्रित करने से स्वाधिष्ठान चक्र पर नियंत्रण होने के कारण सब प्रकार के दुःखों से मुक्ति होती है । सब प्रकार की विकृत भावनाओं का विलय होता है।
नेत्र आदि पर इस मंत्र का ध्यान करने की विधि
दोनों नेत्रों पर क्रमशः ध्यान केन्द्रित करें । दायें नेत्र पर 'ण' का ध्यान, बायें नेत्र पर 'मो' का ध्यान, दायें कान पर 'अ' का ध्यान, बांयें कान पर 'र' का ध्यान, दायें नाक पर 'हं' का ध्यान, बांयें नाक पर 'ता' का ध्यान तथा मुँह पर 'णं' का ध्यान करें ।
यह एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण और रहस्यात्मक प्रयोग है । स्वाधिष्ठान चक्र का संबंध जिह्वा एवं जननेन्द्रियों के माध्यम से आनंद एवं भोग की प्राप्ति करने से है। यह अतीत की संचित स्मृतियों और संस्कारों का भंडार है । यह मानव-जाति की सबसे प्राचीन और गहनतम मूल प्रवृत्तियों का केन्द्र है। इस केन्द्र के परिष्कार से मनुष्य पाश्विक वृत्तियों से ऊपर उठ जाता है। इस चक्र पर भगवान पार्श्व का ध्यान, णमो अरहंताणं का ध्यान अथवा ऊपर नेत्र आदि पर ' णमो अरहंताणं' का जो प्रयोग दिया है उसी विधि से ध्यान आदि प्रयोग करने से उत्सर्जक एवं प्रजनन अंगों के कार्यों से संबंधित विकार दूर होते हैं । इस केन्द्र पर ध्यान करने के १२६ / लोगस्स - एक साधना-२