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नहीं टिक पाया, वह भाग गया और अर्जुनमाली भूमि पर धड़ाम से गिर पड़ा। शूलपाणी यक्ष ने भगवान महावीर को भयंकर कष्ट दिये। भगवान कायोत्सर्ग स्थित हो गये । वे ध्यान कोष्ठक में चले गये। उस समय उस वज्रपंजर में कोई दूसरा प्रवेश नहीं कर सकता था । निस्संदेह कायोत्सर्ग से वज्रपंजर का निर्माण होता है।
भेद विज्ञान की प्रक्रिया कायोत्सर्ग
कायोत्सर्ग बंधन मुक्ति की साधना का प्रयोग है । वह अवश्य करणीय प्रयोग है। साधक की प्रत्येक प्रवृत्ति के पश्चात कायोत्सर्ग की अनिवार्यता उसके महत्त्व को सुचित करती है। आवश्यक प्रवृत्ति के पश्चात इसकी अनिवार्यता है, इससे सहज एक प्रश्न उत्पन्न होता है कि कायोत्सर्ग को इतना महत्त्व क्यों दिया गया है? ? इस रहस्य पर जब दृष्टि अन्वेषण किया तो स्वतः समाधान मिला कि प्रवृत्ति प्राणी के साथ जुड़ी हुई है । प्रवृत्ति निवृत्ति से ही पूर्ण बनती है, निवृत्ति से प्रवृत्ति का मूल्य आंका जाता है।
प्रवृत्ति से चंचलता, चंचलता से थकान, थकान से तनाव बढ़ता है, उसका समाधान नींद या विश्राम है। जब नींद नहीं आती है तब व्यक्ति नींद की गोली की शरण में जाता है। कायोत्सर्ग थकान मिटाने और नींद दिलाने का कम्पोज मात्र नहीं है अपितु उसका आध्यात्मिक मूल्य भी सर्वोपरि है । कायोत्सर्ग भेद - विज्ञान की प्रक्रिया है । भेद-विज्ञान में ममत्व का विसर्जन और देहासक्ति का परिहार होता है । भेद विज्ञान एक ऐसा तत्त्व है जिससे दूसरी वस्तु को स्वयं से सर्वथा भिन्न किया
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सकता है। कायोत्सर्ग का बहुत बड़ा आध्यात्मिक रहस्य है- आत्मा और शरीर की भिन्नता का बोध और अनुभव | इस स्थिति में शरीर की कोई भी क्रिया या प्रतिक्रिया से आत्मा प्रभावित नहीं हो सकता। जैसे
गजसुकुमाल मुनि के सिर पर अंगारे रख दिये गये फिर भी वे ज्यों के त्यों ध्यानस्थ खड़े रहे । कुंती नगर के राजा पुरुषसिंह के निर्देश से जल्लाद ने खंदक मुनि के शरीर की खाल उतारी उसके बावजूद भी वे ध्यान में लीन बने रहे । मेतार्य मुनि के सिर पर गीला चमड़ा बांधा गया । ज्यों-ज्यों चमड़ा सुखा मुनि के शरीर में असह्य वेदना हुई फिर भी समभाव से सहन की । मुनि स्कन्धक को पालक ने तिलों की तरह घाणी में पील दिया फिर भी उनके मुँह से उफ तक नहीं निकला । भगवान महावीर के साधना काल में अनेकों दंश उन्हें काटते, उनका रक्त पीते, मांस खाते उसके बावजूद भी वे ध्यानस्थ रहते । बाहुबली बारह महिने ध्यानस्थ खड़े रहे। उनके कंधों पर पक्षियों ने नीड़ बना दिये । हाथी अपनी खुजली मिटाने
८८ / लोगस्स - एक साधना-२