________________
गया। बेहोशी में भी उसका शरीर इतना ऊपर उछल रहा था कि उसे बिस्तर पर बांधकर रखा गया। उपचार चल रहा था। दो दिन बाद बिमारी ने भयंकर रूप ले लिया। डॉक्टरों ने अपना निर्णय अन्तिम रूप में सुनाते हुए कहा-अब कोई उपचार होने की संभावना नहीं है आप इन्हें कहीं भी ले जा सकते हैं। पारिवारिक जन इस संवाद को सुनकर निराश हो गये। उस समय पारस के चाचा प्रेम सुराणा ने सबको सांत्वना देते हुए कहा-“अब अंतिम उपचार है अपने आराध्य की स्तुति, सब बैठ जाओ, रोना बंद करो, सब "भिक्षु स्वामी" का जप करो। सब तन्मयता पूर्वक जप में बैठ गये। श्रद्धा, जप और तन्यमता का ऐसा कोई जादुई प्रभाव हुआ कि आधा घंटा के बाद ही उस बहन की मूर्छा दूर हो गई। उसका उछलना बंद हो गया। वेदना कुछ शांत हुई। वह बिस्तर से उठकर बैठ गई। सबके साथ जप करने लगी। कुछ समय बाद अंगड़ाई लेकर वह बिस्तर से नीचे उतरी
और चलने लग गई। सबसे बातें करने लगी। सब आश्चर्यचकित नयनों से देखते रहे। कुछ क्षणों पहले जहाँ मृत्यु स्पष्ट दृष्टिगोचर हो रही थी, वहाँ कुछ ही क्षणों में जीवन का संचार हो उठा। डॉक्टरों ने पूछा-“आपने किस संजीवनी विधा का प्रयोग किया" । प्रेम ने कहा-“हम कोई विधा नहीं जानते, हमने अपने आराध्य/गुरु के नाम का स्मरण किया। जो कुछ हुआ वह अपने गुरुदेव के जप से ही हुआ।" इसके बाद वे सिरियारी भिक्षु समाधि स्थल पर गये और सकुशल अपने घर लौट आए।
आचार्यश्री महाप्रज्ञजी ने मुनि अवस्था में अपनी संसार पक्षीय मातुश्री साध्वी बालूजी को जीवन के अंतिम दिनों में भेद विज्ञान का मंत्र दिया। जिससे उनकी बीमारी की अनुभूति में ६०% का अन्तर आया। इसी प्रकार संत भीखणजी का स्मरण, भिक्षु म्हारे प्रगट्याजी', मुणिन्द मोरा', विघ्न हरण स्तवन और चतुर्विंशति स्तव आदि आध्यात्मिक स्तवनों में शक्ति जागरण एवं विघ्न निवारण के अनूठे एवं प्रभावक अनेकों स्रोत हैं, यदि ऐसा कहा जाये तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।
उपरोक्त स्तवन मंत्रवत् आत्मतोष देने वाले हैं। तेरापंथ धर्मसंघ में श्री मज्जायाचार्य को शांतिविधायक और मंत्रदाता के रूप में ख्याति प्राप्त है। उनके द्वारा प्रदत्त “ॐ अ भी रा शि को नमः"* मंत्र लाखों लोगों का आस्थाधार है। दर्शन विशुद्धि और मनोविज्ञान
मनोविज्ञान की खोज तो अवचेतन मन तक ही पहुँच पाई है किंतु भारतीय * विशेष जानकारी के लिए देखें “जय-जय जयमहाराज" ५२ / लोगस्स-एक साधना-१