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हैं। इनकी सूची बहुत लम्बी है, लेकिन इतना निश्चित है कि नमस्कार महामंत्र, लोगस्स स्तव आदि आध्यात्मिक अनुष्ठानों से सभी प्रकार के शारीरिक, मानसिक एवं भावनात्मक रोगों का सफल उपचार किया जा सकता है। क्योंकि यह साधना मन के धरातल पर आरंभ होती है। मन की शांति, स्वास्थ्य, दीर्घ जीवन, तनाव मुक्ति तथा बुरी आदतों से छुटकारा पाने के लिए जीवन को प्रायोगिक धरातल पर निष्णात बनाना परम आवश्यक है।
लोगस्स में अर्हतों का ध्यान श्वेत रंग में किया जाता है। श्वेत रंग शुद्धि कारक है। शारीरिक दृष्टि से यह शरीर के सभी रसायनों, धातुओं को शुद्ध करता है। हम चाहें तो इसे वैज्ञानिक D.N.A. का परिवर्तन भी कह सकते हैं। श्वेत रंग की एक विशेषता यह भी है कि वह रक्त के श्वेत कणों को सशक्त बनाता है। ये श्वेत परमाणु ही रोग के कीटाणुओं से संघर्ष करके उन्हें विनष्ट करते हैं परिणाम स्वरूप रोग समाप्त हो जाते हैं।
__दूसरी दृष्टि से रोग और रोगाणु शरीर के अरि (शत्रु) हैं। उनका उन्मूलन 'णमो अरहंताणं' पद से हो जाता है यह अर्हत् स्तुति का बहुत बड़ा और गहन रहस्य है।
सिद्धों के स्वरूप के साथ अरुण रंग का ध्यान रक्त के लाल कणों को सशक्त बनाता है। उन्हीं से शरीर और प्राणों में उत्साह, बल आदि का संचार होता
चिकित्सा शास्त्री, वैद्य, डॉक्टर जिसे रक्ताल्पता कहते हैं, वे इन्हीं रक्त के लाल कणों की न्यूनाधिकता को रक्ताल्पता शब्द से द्योतित करते हैं। फिर सिद्धाणं पद तो सभी प्रकार की सफलता एवं सिद्धियाँ प्रदायक है ही। आचार्यश्री तुलसी की भक्तिमय दो पंक्तियों के साथ इस निष्कर्ष को विराम दे रही हूँ
भाव भीनी वंदना भगवान चरणों में चढ़ाएं।
शुद्ध ज्योतिर्मय निरामय रूप अपने आप पाएं ॥१८ अर्थात् अर्हत भगवान् शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक सब रोगों से मुक्त होकर निरामय स्वरूप हो गये हैं। वे संसार की सर्व मलिनताओं को धोकर पूर्ण रूप से शुद्ध बन गये। उनके भीतर की ज्योति प्रकट हो गई। यह स्वरूप हमें भी उपलब्ध हो इस प्रेरणा से हम अर्हत् भगवान के चरणों में भावपूर्ण वंदना करते
हैं।
संदर्भ १. कर्म बंधन और मुक्ति की प्रक्रिया-पृ./१०३
लोगस्स : रोगोपशमन की एक प्रक्रिया / २११