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भी काफी रहती। उस समय आचार्यश्री महाप्रज्ञ ने उन्हें एक मंत्र जपने को कहा। वह मंत्र था
___ “चदेसु निम्मलयरा आइच्चेसु अहियं पयासयरा आरोग्ग बोहि लाभं" की प्रतिदिन तीन माला फेरो। इस प्रयोग से स्वास्थ्य में सुधार हुआ।
(प्रेक्षाध्यान प्रयोग धर्म महाप्रज्ञ स्मृति विशेषांक, पृ./६५) इस प्रकार आराध्य में तल्लीनता के समय उत्पन्न शांत तरंगों की ऊर्जा से शरीर की धमनियाँ सक्रिय होती हैं। परिणाम स्वरूप रक्त की सफाई होने से रक्त संचार तंत्र स्वस्थ बनता है तथा नाभि से लेकर मस्तिष्क तक के चैतन्य-केन्द्र सक्रिय होते हैं।
श्री गुलाबचन्द भाई के नमस्कार महामंत्र के अक्षरों की विद्युत चुंबकीय ध्वनि तरंगों के प्रभाव के कारण ही वमन द्वारा कैंसर के कीटाणु और दूषित रक्त बाहर निकल गया था। वे स्वस्थ हो गये। ऐसी अनेकों घटनाएं सुनते-पढ़ते हैं कि मंगलपाठ, लोगस्स, भक्तामर व नमस्कार महामंत्र के प्रभाव से अनेकों उपद्रव, रोग, अनिष्ट आदि का निवारण होता है।*
मध्य रात्रि ठीक बारह बजे एक बार लोगस्स का तन्मयता पूर्वक स्तवन नियमित रूप से करने पर कैंसर जैसी असाध्य व्याधि का भी आध्यात्मिक उपचार संभव है-ऐसा किसी अनुभवी साधक द्वारा श्रुत है। ३. समस्या
शारीरिक पीड़ा मंत्र आरोग्गबोहिलाभं समाहिवरमुत्तमं दिंतु मंत्र संख्या प्रतिदिन एक माला प्रयोग विधि लयबद्ध दीर्घश्वास का प्रयोग (मंत्र का प्रयोग भी दीर्घश्वास के साथ किया जा सकता है।) लाभ
शारीरिक बाधा का निवारण होता है।३ ४. शारीरिक दौर्बल्य
आसन
__ * विशेष जानकारी के लिए देखें नमस्कार महामंत्र एक अनुशीलन भाग एक का परिशिष्ट
२०८ / लोगस्स-एक साधना-१