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कल्पान्तकाल - पवनोद्धत-वहिनकल्पं दावानलं ज्वलितमुज्जवलमुत्स्फुलिंगम् । विश्वं जिघस्तुमिव सम्मुख मापतन्तं त्वन्नामकीनजलं शमयत्यशेषम् ॥
अर्थात् प्रलयकाल के प्रचण्ड वायुवेग से उत्पन्न भीषण अग्निकाण्ड वाला, ज्वलित, उज्ज्वल, फुल्लिंगे बिखेरता हुआ, समस्त विश्व को निगल जाने की इच्छा करता हुआ दावानल भी यदि सामने आ पड़े तो तुम्हारे नाम रूप कीर्तन जल से सर्वथा शांत हो जाता है। इसी तथ्य को रूपायित करने वाले कुछ घटना प्रसंग जो अपने आप में चामत्कारिक और प्रेरणाप्रद हैं, निम्न हैं ।
१. मालव प्रदेश में जंगली झाड़ियों के मध्य एक कंजोड़ा नामक ग्राम बसा हुआ है । इस गाँव में एक श्रावक प्रतिदिन रात्रि चौविहार करता था। एक दिन वह घोड़े पर बैठकर अपने गाँव आ रहा था । मार्ग में घोड़ा सुगंध से कुछ दूरी पर रूक गया। आगे जाकर उसने देखा तो सिंह सामने खड़ा था । उसने 'नवकार मंत्र' बोला और सिंह से कहा- मेरे रात्रि चौविहार है, घर समय पर नहीं पहुँचा तो भूखा रह जाऊँगा, अतएव हे जंगल के राजा सिंहराज ! आप रास्ता छोड़ दें, मुझे जाने दें। पुनः नवकार मंत्र बोला। देखते ही देखते सिंह रास्ता छोड़कर चला गया और वह श्रावक सानंद घोड़े पर बैठकर घर आ गया।
यह एक सत्य घटना है । भक्तामर, कल्याणमंदिर, लोगस्स, उवसग्गहर स्तोत्र आदि से जुड़ी इस प्रकार की अर्हत् स्तुति की अनेकों घटनाएं इतिहास विश्रुत हैं । ऐसी ही एक दुर्घटना जो भाई गिरधारी के जीवन में घटित हुई जो चौबीस तीर्थंकरों के नाम स्मरेण से चामत्कारिक घटना के रूप में प्रख्यात हो गई । २. वि.सं. २०१८ का घटना प्रसंग है। रामामंडी (पंजाब) की बहन कलावती का पुत्र गिरधारी व्यापार की दृष्टि से जीप लेकर पोरबंदर से जामनगर जा रहा था। जाते समय माँ ने उसे चौबीस तीर्थंकरों के नाम (लोगस्स का पाठ ) बोलने को कहा । वह कुछ जल्दी में था। घर से रवाना होते समय माँ द्वारा बात विस्मृत हो गई। उस दिन कलावती बहन के पन्द्रह दिन का तप था। वह रात्रि के समय ध्यान कर रही थी। ध्यान में उसे ऐसा आभास हुआ कि गिरधारी की जीप जंगल के एक गड्ढे में गिर गई है, पर चोट किसी को नहीं आई ।
वह वहीं पर ( घर में ही) लोगस्स का जप करने लगी । इधर कार गड्ढे में गिरते ही अचानक कलावती बहन की कही बात ड्राइवर को याद आई। उसने
१६६ / लोगस्स - एक साधना-१