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जन्म-मरण, लोक का अलोक में प्रविष्ट नहीं होना और अलोक का लोक में प्रविष्ट नहीं होना, इत्यादि।१२
- भगवती सूत्र में द्रव्य, क्षेत्र काल और भाव-इन चार प्रकार के लोक का कथन है। लोक के आकार का संबंध क्षेत्र लोक से है। लोक सुप्रतिष्ठित आकार वाला है। तीन स्रावों में से एक स्राव ओंधा. दुसरा सीधा और तीसरा उसके ऊपर
ओधा रखने से जो आकार बनता है, उसे सुप्रतिष्ठित संस्थान या त्रिसरावसंपुट संस्थान कहा जाता है। इसकी ऊँचाई नीचे से ऊपर चौदह रज्जू है। नीचे जहाँ सातवीं नरक है, वहां यह सात रज्जू चौड़ा है। वहां से क्रमशः घटता-घटता सात रज्जू ऊपर आने पर दोनों सिकोरों की संधि के स्थान में जहाँ मध्य लोक है, वहाँ एक रज्जू चौड़ा है। फिर क्रमशः बढ़ता-बढ़ता साढ़े तीन रज्जू ऊपर पहुँचने पर दूसरे-तीसरे सिकारों की संधि स्थान में जहाँ पाँचवा स्वर्ग है, वहाँ पांच रज्जू चौड़ा है। उसके बाद फिर क्रमशः घटता-घटता साढ़े तीन रज्जू ऊपर जाने पर वहाँ तीसरे सिकोरे का अन्तिम भाग अर्थात् सिद्धशिला है, वहाँ पर एक रज्जू चौड़ा है। इसको निम्न चित्र के माध्यम से समझा जा सकता है
लोक का स्वरूप
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सात रज्जु से कुछ कम ऊर्ध्वलोक ..............
ऊर्ध्वलोक मध्य
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स.... - तिर्यकलोक मध्य
लोकमध्य
अधोलोक
---------सात रज्जु से कुछ अधिक अधोलोक...........
१३२ / लोगस्स-एक साधना-१