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समझना चाहिए अवश्य ही कोई कल्याणकारी घटना होगी। दिगम्बर ग्रंथ महापुराण में आचार्य जिनसेन ने मत्स्य युगल और सिंहासन-ये दो अतिरिक्त स्वप्न बतलाये हैं। आवश्यक नियुक्ति में ऐसा उल्लेख मिलता है जब मरुदेवा माता ने नाभि को स्वप्नों की बात कही तब नाभि ने कहा-देवी! तुम्हारा पुत्र महान कुलकर होगा। उस समय इन्द्र का आसन चलित हुआ और वह शीघ्र ही वहाँ आ पहुँचा। उसने आते ही कहा-“देवानुप्रिये! तुम्हारा पुत्र समस्त विश्व के लिए मंगलकारी होगा। वह प्रथम नृपति और प्रथम धर्म चक्रवर्ती होगा।"६ २. जन्म कल्याणक
तीर्थंकरों का जब जन्म होता है तब सम्पूर्ण लोक में उद्योत होता है। तीर्थंकर की माताएं प्रच्छन्न गर्भ वाली होती हैं। उनके जरा, रूधिर, कल्मषआदि नहीं होते। गर्भकाल पूरा होने पर तीर्थंकरों का अद्भूत शिशु के रूप में जन्म होता है। इस समय सारे संसार में सुख की किरणें फैल जाती हैं। तीर्थंकर जन्म के समाचार विभिन्न माध्यमों से सर्वत्र फैलते हैं। उस समय भी इन्द्र का सिंहासन कम्पायमान होता है तब वह अवधि ज्ञान से जान लेता है कि प्रभु का जन्म हो । गया। वह देवों को बुलाकर जन्मोत्सव में चलने को कहता है। तीर्थंकर की नगरी में पहुंचकर वह इन्द्राणी से कहता है-"प्रिये! माता को सुख की नींद सुलाकर बालक को ले आओ। सुमेरु की पांडुशिला पर दिव्य अभिषेक करेंगे।"
इन्द्राणी माता को अस्वापिनी निद्रा दिलाकर बालक को ले आती है। इन्द्र ऐरावत हाथी पर बालक को बिठाकर अपूर्व समारोह के साथ सुमेरु पर ले जाकर पाण्डुशिला पर बिठाता है। ६४ इन्द्र और देव क्षीर सागर से स्वर्णकलशों में जल भरकर लाते हैं और बालक का मंगल अभिषेक करते हैं। अभिषेक के पश्चात दिव्य वस्त्राभूषण पहनाकर शोभायात्रा से इन्द्र वापस लौटकर बालक को माता के साथ सुलाकर कहता है- “हे रत्नकुक्षी धारिके! हे विश्वदीपिके! तुम्हें प्रणाम/ शत शत प्रणाम।' इतना कह इन्द्र शिशु के पास कुंडलयुगल, रत्नजड़ित गेंद तथा देवदूष्य वस्त्र रखकर विदा लेता है। ३. दीक्षा कल्याणक
राज्य शासन से विरक्त हो जब तीर्थंकर सन्यस्त होने की इच्छा व्यक्त करते
यह सौधर्म इन्द्र का वाहन है। देव विक्रिया से एक लाख उत्सेध योजन प्रमाण दीर्घ एरावत नामक हाथी बनता है। उसके 32 मुख होते हैं। एक-एक मुख में चार-चार दांत होते हैं। एक-एक दांत में एक एक सरोवर होता है। एक-एक सरोवर में एक-एक उत्तम कमलवन खण्ड होता है। एक-एक वनखण्ड में 32 महापद्म होते हैं। जो एक-एक योजन प्रमाण होते हैं। एक-एक महापद्म पर एक-एक नाट्यशाला होती है। एक-एक नाट्यशाला में उत्तम 32-32 अप्सराएं नृत्य करती हैं।
लोगस्स स्वरूप मीमांसा / ११५