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सच्चं भयवं
- सत्य ही भगवान है। अप्पणा सच्चमेसेज्जा - स्वयं सत्य को खोजें। मेत्तिं भूएसु कप्पए - सबके साथ मैत्री करें। संपिक्खए अप्पगमप्पएणं - आत्मा के द्वारा आत्मा को देखें।
स्वयं सत्य को खोजें, सत्य ही भगवान है, आत्मा के द्वारा आत्मा को देखें-इन वाक्यों ने अध्यात्म की दृष्टि को वैज्ञानिकता प्रदान की है और सबके साथ मैत्री करो-इस मन्त्र वाक्य ने वैज्ञानिक की संहारक शक्ति पर अनुशासन स्थापित किया है। वर्तमान युग का वैज्ञानिक पदार्थ विज्ञान से आत्मज्ञान की ओर मुड़ने का चिन्तन कर रहा है। ___ इन आध्यात्मिक जीवन-मूल्यों को वैज्ञानिक सन्दर्भो से समझने पर स्वतः ही सारी जिज्ञासाएँ समाहित होने लगती हैं। जिस प्रकार व्यक्ति के पास वायुमण्डल में रेडियों और टेलीविजन की तरंगें हैं, लेकिन जब तक उसके पास रेडियों और उसका एरियल, टी.वी. और उसका एंटीना नहीं होगा तब तक वह उन्हें देख भी नहीं सकेगा और सुन भी नहीं सकेगा। परन्तु ज्योंहि ये साधन सामग्रियाँ उपलब्ध होंगी वह उन्हें देखने और सुनने में सफल हो जायेगा। ठीक इसी प्रकार साधक को सिद्ध या परमात्मा बनने हेतु अथवा परमात्म स्वरूप के साक्षात्कार के लिए अपने हृदय में सत्य और श्रद्धा का एरियल अथवा एंटीना लगाने की अपेक्षा है।
. तत्त्वतः एक सत्य से दूसरे सत्य की ओर अनवरत अनिरूद्ध गति ही जीवन की जीवन्तता है। महाकवि शेक्सपियर के शब्दों में "जिंदगी की कीमत जीने में है जीवन बिताने में नहीं"। सचमुच जीवन एक ऊर्जा है, एक महाशक्ति है, एक रहस्य है, एक साधना है और आनंद का एक महाग्रंथ है। सत्य की दिशा में प्रस्थित जीवन ही दिव्य एवं अभिनंदनीय हो सकता है। ऐसे जीवन की आराधना ही मानव जीवन की सर्वोपरि साधना और उपलब्धि है जैसा कि जैन आगमों में कहा गया है
"पुरिसा परमचक्खू विप्परकम्मा" अर्थात् पुरुष! तू परम चक्षु-अन्तर्दृष्टि को जगा और आत्मा से परमात्मा बनने की दिशा में विशेष पुरुषार्थ कर। आचार्य श्री महाप्रज्ञजी ने अतुलातुला (पृ. २०४) में इसी सत्य को उद्भाषित करते हुए लिखा है
“सत्यात् परो नो परमेश्वरोऽस्ति"-सत्य से बढ़कर कोई ईश्वर नहीं है। “सत्यस्य पूजा परमात्मपूजां-सत्य की पूजा परमात्मा की पूजा है। इसी सत्य को परिभाषित एवं व्याख्यायित करते हुए महाप्राण महामना