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भगवती सूत्र
श. १३ : उ. ४ : सू. ७६-८१ जीवास्तिकाय के कितने प्रदेश अवगाढ हैं ? स्यात् अवगाढ हैं, स्यात् अवगाढ नही हैं। यदि हैं तो अनंत प्रदेश अवगाढ हैं। इसी प्रकार यावत् अद्धा-समय की वक्तव्यता। ७७. भंते ! जहां जीवास्तिकाय का एक प्रदेश अवगाढ है, वहां धर्मास्तिकाय के कितने प्रदेश
अवगाढ हैं ? एक, इसी प्रकार अधर्मास्तिकाय के प्रदेश भी, इसी प्रकार आकाशास्तिकाय के प्रदेश भी वक्तव्य हैं। जीवास्तिकाय के कितने प्रदेश अवगाढ हैं?
अनंत। शेष धर्मास्तिकाय की भांति वक्तव्यता। ७८. भंते ! जहां पुद्गलास्तिकाय का एक प्रदेश अवगाढ है, वहां धर्मास्तिकाय के कितने प्रदेश
अवगाढ हैं? इस प्रकार जैसे जीवास्तिकाय के प्रदेश की वक्तव्यता, वैसे ही निरवशेष वक्तव्यता। ७९. भंते ! जहां पुद्गलास्तिकाय के दो प्रदेश अवगाढ हैं वहां धर्मास्तिकाय के कितने प्रदेश
अवगाढ हैं ? स्यात् एक, स्यात् दो। इसी प्रकार अधर्मास्तिकाय की भी, इसी प्रकार आकाशास्तिकाय की
भी वक्तव्यता। शेष धर्मास्तिकाय की भांति वक्तव्य है। ८०. भंते ! जहां पुद्गलास्तिकाय के तीन प्रदेश अवगाढ हैं, वहां धर्मास्तिकाय के कितने प्रदेश
अवगाढ हैं? स्यात् एक, स्यात् दो, स्यात् तीन। इसी प्रकार अधर्मास्तिकाय की भी, इसी प्रकार आकाशास्तिकाय की भी वक्तव्यता। शेष की दो प्रदेश की भांति वक्तव्यता। इसी प्रकार प्रथम तीन अस्तिकायों में एक-एक प्रदेश बढ़ाना चाहिए। शेष की दो की भांति वक्तव्यता यावत् दश प्रदेश में स्यात् एक, स्यात् दो, स्यात् तीन यावत् स्यात् दश। संख्येय प्रदेश में स्यात् एक, स्यात् दो यावत् स्यात् दस, स्यात् संख्येय। असंख्येय में स्यात् एक यावत् स्यात् संख्येय, स्यात् असंख्येय। इसी प्रकार असंख्येय की भांति अनंत की वक्तव्यता। ८१. भंते ! जहां एक अद्धा-समय अवगाढ है वहां धर्मास्तिकाय के कितने प्रदेश अवगाढ हैं? एक। अधर्मास्तिकाय के कितने प्रदेश अवगाढ हैं ? एक। आकाशास्तिकाय के कितने प्रदेश अवगाढ हैं ? एक। जीवास्तिकाय के कितने प्रदेश अवगाढ हैं? अनंत । इस प्रकार यावत् अद्धा-समय।
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