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श. १२ : उ. ९ : सू. १७७-१८५
१७७. भंते ! भाव- देव कहां से उपपन्न होते हैं ?
इसी प्रकार जैसे उपपात वक्तव्य है ।
भगवती सूत्र
पण्णवणा अवक्रांति - पद (६ / ९२) की भांति भवनवासी- देवों का
पंचविध - देवों की स्थिति - पद
१७८. भंते ! भव्य द्रव्य देवों की स्थिति कितने काल की प्रज्ञप्त है ? गौतम ! जघन्यतः अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्टतः तीन पल्योपम ।
१७९. नर-देवों की पृच्छा ।
गौतम ! जघन्यतः सात सौ वर्ष, उत्कृष्टतः चौरासी लाख पूर्व ।
१८०. धर्म - देवों की पृच्छा ।
गौतम ! जघन्यतः अन्तर्मुहूर्त्त, उत्कृष्टतः कुछ कम पूर्व-कोटि । १८१. देवातिदेवों की पृच्छा ।
गौतम ! जघन्यतः बहत्तर वर्ष, उत्कृष्टतः चौरासी लाख पूर्व । १८२. भाव-देवों की पृच्छा ।
गौतम ! जघन्यतः दस हजार वर्ष, उत्कृष्टतः तेतीस सागरोपम ।
पंचविध देवों का विक्रिया-पद
१८३. भंते ! क्या भव्य द्रव्य देव एक रूप विक्रिया करने में समर्थ हैं ? अनेक रूप विक्रिया करने में समर्थ हैं ?
गौतम ! एक रूप-विक्रिया करने में भी समर्थ हैं, अनेक रूप - विक्रिया करने में भी समर्थ हैं । एक-रूप-विक्रिया करता हुआ एकेन्द्रिय-रूप यावत् अथवा पंचेन्द्रिय-रूप, अनेक रूप-विक्रिया करता हुआ एकेन्द्रिय-रूपों यावत् अथवा पंचेन्द्रिय-रूपों की विक्रिया करता है । रूप संख्येय अथवा असंख्येय, संबद्ध अथवा असंबद्ध, सदृश अथवा असंदृश होते हैं, विक्रिया करने के पश्चात् इच्छानुसार कार्य करते हैं। इसी प्रकार नर - देव की भी वक्तव्यता, इसी प्रकार धर्म-देव की भी वक्तव्यता ।
१८४. देवातिदेवों की - पृच्छा ।
गौतम ! एक रूप - विक्रिया करने में भी समर्थ हैं, अनेक रूप - विक्रिया करने में भी समर्थ हैं। यह विषय विक्रिया करने की शक्ति की दृष्टि से बताया गया है किंतु क्रियात्मक रूप में उन्होंने कभी अतीत में विक्रिया नहीं की, वर्तमान में नहीं करते और भविष्य में नहीं करेंगे।
भाव-देव भव्य द्रव्य देव की भांति वक्तव्य हैं।
पंचविध - देवों का उद्वर्तन - पद
१८५. भंते ! भव्य द्रव्य देव अनंतर उद्वर्तन कर कहां जाते हैं ? कहां उपपन्न होते हैं क्या नैरयिकों में उपपन्न होते हैं यावत् देवों में उपपन्न होते हैं ?
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