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पृष्ठ सूत्र पंक्ति अशुद्ध ९४९ २८ ४ प्रकार बतलाना चाहिए
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वैमानिक देवों तक,
२८ ५, ६ है इन जीवों का उपपात सभी के
विषय में जैसे पण्णवणा के छट्ठे पद में अवक्रान्ति (सू. ७०-९८ ) में बतलाया गया है वैसे
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३०
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३० १-२ पूरा उद्देशक बतलाना चाहिए
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इन जीवों का परिमाण दो अथव
होता है इन जीवों का संवेध वैसा
३४ ३-५ इसी प्रकार राशियुग्म त्र्योजनैरयिक
~~~~
इन जीवों का परिमाण एक
चाहिए। (भ. ३५/११)
इसी प्रकार राशियुग्म त्र्योज-नैरयिक
के विषय में भी बतलाना
चाहिए, इसी प्रकर राशियुग्म कल्योज चाहिए), इस प्रकार कल्योज के
नैरयिक जीवों के विषय में भी
साथ भी (बतलाना चाहिये),
बतलाना चाहिये,
उद्देशक में
होता है, इन
बतलाया गया है वैसा
उद्देशक (भ. ४१/९-२४) में (बतलाया गया है वैसा) वैमानिक देवों तक बतलाना चाहिए। वैमानिक (तक बतलाना चाहिए)। प्रकार पूरा (पूरा (उद्देशक (भ. ४१/३-५) बतलाना चाहिए
उद्देशक बतलाना चाहिए,
(इन जीवों का) परिमाण - एक उपपन्न होते हैं, (इन का) संवेध (वैसा
का संवेध वैसा
शुद्ध
प्रकार (भ. ४१/९-२४ की भांति)
(बतलाना चाहिए) वैमानिक,
है-उपपात सभी का जैसे (पण्णवणा के छट्ठे पद में) अवक्रान्ति पद ( ६ / ७०-९८) में (बतलाया गया है वैसा)
उद्देशक (भ. ४१/३-५) (बतलाना चाहिए)
(इन जीवों का) परिमाण दो
जीवों के विषय में बतलाना इसी
प्रकार राशियुग्म द्वापरयुग्म नैरयिक जीवों के विषय में भी बतलाना चाहिये, शेष
अथवा
उपपन्न होते हैं, (इन जीवों का) संवेध
(वैसा
चाहिए)।
इस प्रकार त्र्योज के साथ भी (बतलाना
बतलाना चाहिए। (भ. ३५ / ११) बतलाना चाहिए)।
वैसा
चाहिए
उपपन्न
बतलाया गया शेष
इस प्रकार त्र्योज के साथ भी (बतलाना चाहिए), शेष
प्रथम उद्देशक में बतलाया गया है। प्रथम उद्देशक (भ. ४१/९-२४) में (बतलाया गया है वैसा)
वैसा
'वैमानिक देवों तक बतलाना चाहिए। वैमानिक (तक बतलाना चाहिए)।
(वैसा चाहिए)
(उपपन्न
(पण्णवणा, ६/७७ में) बतलाया
गया) शेष
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सूत्र पंक्ति ३६ ३
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९५० ३८ १२ पूरा उद्देशक बतलाना चाहिए
यावत् कृष्णलेश्य राशियुग्मकृतयुग्मबतलाना चाहिए।
६, ७ कृष्णलेश्य राशियुग्म कृतयुग्मविषय में भी वैसा ही बतलाना चाहिए
७
८
९
१०
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२
२
२
३
१
अशुद्ध उद्देशक में बतलाया गया वैसा बतलाना चाहिए।
"
२
३
कृष्णलेश्य
- कृतयुग्म
- कृतयुग्म )
विषय में वैसा ही बतलाना चाहिए, (विषय में) वैसा ही (भ. ४१/१५
की भांति ) (बतलाना चाहिए), (भ. ४१/१५) यावत् (कृष्णलेश्यराशियुग्म कृतयुग्म(बतलाना चाहिए)। (कृष्णलेश्य राशियुग्म कृतयुग्म - ) (विषय में) भी (वैसा ही (भ. ४१ / १५ की भांति) बतलाना चाहिए)
-नैरयिक जीवों के विषय में बतलाया नैरयिक- जीवों के (विषय में)
गया (भ. ४१/११) ।
उन जीवों के विषय में
ये जीव
में बतलाया
चाहिए। नैरयिक-जीवों
इन जीवों
उद्देशक (म. ४१/३-३४) (बतलाया गया वैसा बतलाना चाहिए)। (कृष्णलेश्य
संबंध जैसा
उद्देशकों में बतलाया
भन्ते ! कृष्णलेश्य
प्रकार पूरा उद्देशक बतलाना चाहिए प्रकार उद्देशक (भ. ४१ / ३६ )
बतलाना चाहिए। -जीवों
में राशियुग्म
बतलाये गये
सम्पूर्ण रूप से
(बतलाया गया)
(उन जीवों के विषय में)
(ये जीव)
(भ. ४१/२२-२४) में (बतलाया चाहिए)।
(नैरयिक- जीवों)
उद्देशक (भ. ४१/३६) (बतलाना चाहिए)
कृष्णलेश्य
(बतलाना चाहिए)।
इन (कृष्णलेश्य - राशियुग्म कृतयुग्म, कृष्णलेश्य राशियुग्म त्र्योज,
कृष्णलेश्य राशियुग्म द्वापरयुग्म और कृष्णलेश्य - राशियुग्म कल्योज -) जीवों
संवेध जैसा
-उद्देशकों (क्रमशः प्रथम उद्देशक (भ. ४१/४-२४), दूसरे उद्देशक (भ. ४१ / २६-२८), तीसरे उद्देशक (भ. ४१/३०-३१), चौथे उद्देशक (भ. ४१ / ३३-३४) में (बतलाया बतलाना चाहिए)।
(-जीवों)
में (भ. ४१/३६-४१ में) (राशियुग्मबतलाये गये)
निरवशेष
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४४ ४-५
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९५१ ४६.
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४६
४८
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५०
के नैरयिक जीवों का (पण्णवणा, ६/ ७५ में) बतलाया
है वैसा बतलाना चाहिए, शेष उसी हे वैसा बतलाना चाहिए), शेष पूर्ववत्
(भ. ३६-४१) कापोतलेश्य (जीवों)
भी इसी प्रकार (भ. ४१९ / ४४ की भांति) (राशियुग्म
२
- कल्योज के
- कल्योज के)
३-४ है- ( कापोतलेश्य राशियुग्म कृतयुग्म है- इन नैरयिक
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चाहिए,
शेष उसी प्रकार
२-३ प्रकार बतलाने चाहिए, जैसे कापोत
लेश्य राशियुग्म कृतयुग्म नैरयिक जीवों के विषय में बतलाये गये हैं) केवल इतना
राशियुम्म
कल्योज ये चार
उद्देशक बतलाये गये वैसे ही चार उद्देशक तेजोलेश्य
५०
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५०
५०
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५०
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९५१ ५२ २
७
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विषय में बतलाने
१. प्रकार पद्मलेश्य
१
१
२
अशुद्ध शुद्ध है-नीललेश्य राशियुग्म कृतयुग्म है इन तीनों नैरयिक-जीवों राशियुग्म त्र्योज राशियुग्म द्वापर
युग्म, राशियुग्म कल्योज) -नैरयिक
जीवों
के नैरयिक जीवों का बतलाया
२
प्रकार
इसी प्रकार कापोतलेश्य जीवों भी राशियुग्म
, राशियुग्म त्र्यो, राशियुग्म द्वापरयुग्म, राशियुग्म कल्योज) नैरयिक के नैरयिक-जीवों का बतलाया
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५२ ४
भी राशियुग्म
राशियुग्म योज
- कल्योज के चार
३,४ (दण्डक)
बतलाने
१ राशियुग्म्म
५२ ३ में बतलाने
-उद्देशकों
बतलाया
उद्देशक बतलाये गये वैसे ही
के (नैरयिक जीवों का) (पण्णवणा ६/७३ में बतलाया) चाहिए),
शेष पूर्ववत् (भ. ४१/४४ की भांति ) प्रकार (भ. ४१/३६ की भांति ) (बतलाने चाहिए), इतना
(राशियुग्मकल्योज के चार
उद्देशक (भ. ४१/३६-४१ में),
बतलाये गये) वैसे ही ये चार उद्देशक (तेजोलेश्य
विषय में) करने
प्रकार (भ. ४१/४८ की भांति ) पद्मलेश्य
भी (राशियुग्मराशियुग्म त्र्योज
- कल्योज-ये चार
करने
(दण्डकों)
(राशियुग्म
उद्देशक (भ. ४१/५०) किए गए वैसे
ह्य)
में भी करने
-उद्देशकों (म. ४१/१५-२४) (बतलाया