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वाणमन्तर-देव
शेष पूर्ववत्। नागकुमार देव पूर्ववत् । नागकुमार काल की अपेक्षा से संज्ञी पञ्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिक( यौगलिक)) जीव
है, जघन्यतः
"
३१९ १ २ संज्ञी पञ्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिक
( यौगलिक)) जीव उत्कृष्ट काल है, जघन्यतः वाणमन्तर- देवों में उत्पन्न होता है। गमक ज्ञातव्य है ।
वाणमन्तर- देव में
वक्तव्यता ।
अनुबंध- जघन्यतः वाणमन्तर- देव में उपपन्न होते हैं? वाणमन्तर- देव में
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३२०
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३२४.
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अवगाहना जघन्यतः
५.
असंख्यात वर्ष आयुष्य वाले ३२० ९-१० व्यन्तर- देव के रूप में उत्पत्ति
३२० ११ ३२२ शीर्षक
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१
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अशुद्ध
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३२४ १३ में ) - इतने
३२५. २
-देव
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वक्तव्यता,
देव
वक्तव्यता,
स्थिति-जघन्यतः
अनुबंध जघन्यतः
वानमन्तर- देवों में उपपत्र होता है० ? वानमन्तर-देवों में अवगाहना जघन्यतः असंख्यात वर्ष की आयुष्य वाले वानमन्तर देवों के रूप में उपपात (की नागकुमार- उद्देशक भांति (भ. २४ / वक्तव्यता) नागकुमार उद्देशक (भ. १५८, १५९) वक्तव्य है।
२४/१५८, १५९) की भांति (वक्तव्य है)।
ज्ञातव्य हैं।
ज्योतिष्क देव में
भन्ते! कितने
बताया है)
उद्देशक की भांति,
शुद्ध
वक्तव्य है। उपपात आदि
उपपात आदि
हैं ?.... भेद यावत् (भ. २४/१-३) हैं०? भेद (भ. २४/१-३) यावत्
( यौगलिक), जो
( यौगलिक) जो ज्योतिष्क देवों में भन्ते! वह कितने
बताया है।)
उद्देशक (भ. २४ / १२१) की भांति
स्थिति जघन्यतः
शेष पूर्ववत् केवल इतना
? (अथवा ) वानमन्तर - देवों
शेष पूर्ववत् नागकुमार देव पूर्ववत् नागकुमार काल की अपेक्षा
संज्ञी पञ्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिक (योगलिक )) - जीव है, वह जघन्यतः
संज्ञी पञ्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिक ( यौगलिक)) जीव जो उत्कृष्ट काल है, वह जघन्यतः
वानमन्तर- देवों में उपपन्न होता है। गमकों
ज्ञातव्य हैं। वानमन्तर- देवों में वक्तव्यता
(वक्तव्य है), स्थिति जघन्यतः शेष पूर्ववत्, इतना
में), इतने
देवों के
वक्तव्यता (भ. २४/३२४),
देवो
वक्तव्यता (भ. २४/३२४),
स्थिति जघन्यतः
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४
५
६
३
शुद्ध
अनुबन्ध भी काल की अपेक्षा
३२६),
भाग इतने
अवगाहना जघन्यतः भाग, इतने
उत्कृष्ट काल स्थिति में
उत्कृष्ट काल की स्थिति में
गमक की भांति वक्तव्यता। (द्वितीय गमक (भ. २४/३२४-३२६) की
भांति वक्तव्यता (
स्थिति-जघन्यतः ज्ञातव्य है ।
स्थिति जघन्यतः ज्ञातव्य हैं। उपपन्न होते हैं ० ?
उपपन्न होते हैं ?
जीवों की भांति (भ. २४/१३१- जीवों (भ. २४/१३१-१३३) की १३३) नौ
भांति नौ हैं,
है, केवल ज्ञातव्य है । पूर्ववत् ।
होते हैं पृच्छा ? यावत् (भ. २४ / १३४- १३५) । वाले ज्योतिष्क- देव में
अशुद्ध
अनुबन्ध भी काल की अपेक्षा
३२६) केवल
अवगाहना जघन्यतः
गमक
हैं (भ. २४/३२४-३२९)
है होते हैं ? दव उपपद्यमान की
वक्तव्यता (भ. २४/१३९
१४२), ज्योतिष्क देव की
होते हैं ? सौधर्म-देव में सौधर्म देव के रूप में
होते हैं ?...... शेष स्थिति-जघन्यतः पल्योपम
तिर्यग्योनिक ( यौगलिक))
दव
पल्योपम
स्थिति- जघन्यतः
पल्योपम
(भ. २४/३३९) वही वक्तव्यता,
अवगाहना जघन्यतः ४ स्थिति
२६.
ज्ञातव्य हैं।
पूर्ववत् (वक्तव्य हैं)।
होते हैं ० ?
(भ. २४ / १३४-१३५) यावत्
वाला
ज्योतिष्क देवों में
गमक (भ. २४/३२४-३२९)
है,
है (भ. २४/३२४-३२९) होते हैं ० ?
देवों
उपपद्यमान (भ. २४ / १३९ - १४२ ) वक्तव्यता,
ज्योतिष्क देवों की होते हैं ० ? सौधर्म-देवों में
सौधर्म देव के रूप में
होते हैं? अवशेष
स्थिति जघन्यतः
पल्योपम, तिर्यग्योनिक (यौगलिक))
देवों
पल्योपम,
स्थिति जघन्यतः
पल्योपम,
(भ. २४/३३९), वही वक्तव्यता,
अवगाहना जघन्यतः स्थिति जघन्यतः
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१
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५.
६.
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१
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२
३
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९
१
१-२
पर्याप्त संज्ञी मनुष्य, जो
होने योग्य है..... (पृच्छा) सहस्रार -देवलोक
३५४ २-३ मनुष्यों की भांति (वक्तव्यता) (भ.
२४ / ३५२) केवल इतना विशेष
है-सहनन-उपपन्न
तीन । पृथक्त्व (दो
की वक्तव्यता। केवल
चार देवलोक में
में सहनन - प्रथम
उपपन्न होते हैं?
१.
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१०
१०
अशुद्ध
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पल्योपम
होता हैं
गमक के
ज्ञातव्य है
उपपत्र होते हैं ?
वक्तव्यता (भ. २४ / ३३६) । केवल इतना
तिर्यग्योनिक ( यौगलिक) जीव
अवगाहना- जघन्यतः
सातिरेक दो गव्यूत |
उपपत्र होते हैं ?
नैरयिकों
लेकर भवादेश तक
ज्ञातव्य
ज्ञातव्य है ।
तिर्यग्योनिक जीव)
तीनों गमक
होते हैं तो......?
मनुष्यों की
भांति
उपपन्न होते हैं?
की वक्तव्यता ।
ब्रह्मलोक
ब्रह्मलोक देव
संहनन ब्रह्मलोक
उपपन्न होते हैं......?..
उपपात - जैसा
देवों की भांति वक्तव्य है,
(भ. २४/३५४), केवल इतना ग्रैवेयक देव में
पल्योपम,
होता है।
गमक (भ. २४/३३७) क
ज्ञातव्य है
उपपन्न होते हैं ० ?
(भ. २४/३३६) वक्तव्यता, इतना
शुद्ध
तिर्यग्योनिक ( यौगलिक ) - जीव
अवगाहना जघन्यतः
सातिरेक दो गव्यूत
उपपन्न होते हैं ० ?
नैरयिकों (भ. २४/७८, १०५)
प्रारम्भ कर भवादेश पर्यन्त
वक्तव्य
ज्ञातव्य हैं। तिर्यग्योनिक-जीव) तीनों गमकों
होते हैं तो ० ?
मनुष्यों
की भांति
उपपन्न होते हैं ?
की भी वक्तव्यता,
ब्रह्म-देवलोक
ब्रह्म देवलोक
संहनन ब्रह्म देवलोक उपपन्न होते हैं ० ?
उपपात जैसा
देवों (भ. २४/३५२) का (उक्त है) वैसा ( वक्तव्य है),
पर्याप्त संज्ञी मनुष्य जो
होने योग्य है० ? सहस्रार देवलोक
मनुष्यों (भ. २४/३५२ ) की भांति वक्तव्यता, इतना विशेष है- संहनन
उपपन्न
तीन,
पृथक्त्व (दो
तक वक्तव्य है,
चार देवलोकों में
में भी संहनन प्रथम उपपन्न होते हैं ० ?
(भ. २४/३५४), इतना ग्रैवेयक देवों में