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पृष्ठ सूत्र पंक्ति ७४० १७१ २
अशुद्ध
शुद्ध गमक वक्तव्य है (भ. २४/१६६- गमक (भ. २४/१७७-१६७) १६८), केवल वक्तव्य है, केवल अनुबन्ध की स्थिति अनुबन्ध स्थिति ७४० १७२ २-३ गमक की वक्तव्यता कथनीय है। गमक (भ. २४/१७१) की वक्तव्यता
७४० १७१
४
(भ. २४ /७१) सकते हैं। यावत् सदृश अविकल रूप से वक्तव्य
कथनीय है ।। सकते हैं यावत् सदृश (भ. २४/१७०) निरवशेष वक्तव्य
४
१७३ ७४१ १७४ २-३
"
७४१ १७५ २ ७४१ १७५ ३
७४१ १७६ १७७
काल
गमक की
गमक (भ. २४/१७४) की
से उत्पन्न होता है ? बादर अप्कायिकों से उत्पन्न होते हैं? बादर अप्कायिकों
से उत्पन्न होता है ?
कथनीय है। १. अप्कायिक २. पर्याप्त सूक्ष्म- अप्कायिक ३ अपर्याप्त बादर - अप्कायिक ४. पर्याप्त बादर- अप्कायिक। अप्कायिक जीव गमक सदृश
से उपपन्न होते हैं? कथनीय हैं - १. -अप्कायिक २. पर्याप्त सूक्ष्मअप्कायिक ३. अपर्याप्त बादर-अप्कायिक ४. पर्याप्त बादरअप्कायिक)। अप्कायिक जीव
(पहला, दूसरा, चौथा और पांचवां अन्तर्मुहूर्त अधिक
गमक (भ. २४/१६६-१७६) सदृश (पहले, दूसरे, चौथे और पांचवें) अन्तर्मुहूर्त अधिकदो भव-ग्रहण, उनतीस हजार वर्ष होते हैं० ?
दो भव-ग्रहण करता,
उनतीस हजार वर्ष, होते हैं ?
वक्तव्यता, (भ. २४/१७७-१७८) वक्तव्या (भ. २४/१७८), इतना केवल इतना
३
तेजस्कायिक जीवों
७४२ १७९ ४-५ गमक ( में काल संवेध ) - काल
१८०
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३
७४१ १७७ ७४१ १७७ ४-५
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७४१ १७८ १ ७४१ १७८ ५ ७४२ | १७८ ११
१७८ १७
२१
२२
१
२
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१७९
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१८० ५
१८१
१८१
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३
६
की स्थिति वाले उत्कृष्टतः गमक में वक्तव्यता यावत् भवादेश तक काल
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४
७४३ | १८४ | ७४३ १८४ | ६.
पृथ्वीकायिक जीवों होते हैं ?
वर्ष,
है?
की स्थिति वाले, उत्कर्षतः गमक (भ. २४/१७४) यावत् भवादेश (उक्त है, वैसा वक्तव्य है।)
गमक सदृश
वक्तव्य है, शरीरावगाहना प्रथम ज्ञातव्य है।
- असंख्यातवां भाग उत्कृष्टतः
ज्ञान, सम्यग् दृष्टि की अवस्था में होते
तेजस्कायिक-जीवों गमक में काल पृथ्वीकायिक- जीवों होते हैं० ?
वर्ष ।
है० ?
गमक (भ. २४/१७८) सदृश (वक्तव्य हैं), शरीरावगाहना-प्रथम ज्ञातव्य हैं।
असंख्यातवां भाग, उत्कर्षतः ज्ञान (सम्यग्दृष्टि की अवस्था में नियमतः ) होते
पृष्ठ
७४३ १८४
७४४ १८७ ७४४ १८७ २ ७४४ १८७ ३ ७४४ १८७ ७ ७४४ १८८ १८८ ७४४
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१९०
७४६ १९४
१९२
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७४६ १९५
१९६
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२
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१
२
५
२
१०
११
१२
१३
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३
७४६ १९७ २,३
७४६
१९७ ८ ७४६ १९७ ११ ७४६ १९७ १६ ७४७ १९८ २ ७४७ १९९ ७४७ १९९ ५. ७४७ २०० २०१ २०१ ५.
४
अशुद्ध
जीवों की भांति वक्तव्य है (भ. २४/१६७), उपपन्न वक्तव्यता, (भ. २४/१८६ ) ह. १. अनुबन्ध-स्थिति
१४ नौवें गमक में
२
वक्तव्य है, केवल इतना
वक्तव्य है। यावत्
होते हैं ?
होते हैं ?
उपपन्न
उत्पन्न
समान (सातवां, आठवां और नवमां) समान (भ. २४/१८४ - १८६ )
(सातवां, आठवां और नवां)
वक्तव्य है, इतना
वक्तव्य है यावत् होते हैं ० ?
होते हैं ० ? ज्ञातव्य हैं।
ज्ञातव्य है।
शेष पूर्ववत् । यावत् नौवें
है यावत् क्या पर्याप्तक-जीवों से उत्पन्न होते हैं ? (भ. २४/४, ५) । (प्राप्ति) वैसे ही वक्तव्य है (भ. २४/१८४) वक्तव्य है।
तीनों गमकों में (चौथा, पांचवां और छट्ठा)
वक्तव्य है,
शेष पूर्ववत् ।
? असंख्यात
होते हैं.....?
शेष असंज्ञी जीवों की भांति वक्तव्य है यावत्- (भ. २४/१९२, १९३)
वक्तव्यता उसी प्रकार यहां वक्तव्य है, इतना विशेष है (भ. २४/५८ ६२) । अवगाहना गमकों असंज्ञी जीवों पूर्ववत् ।
वक्तव्यता । ? असंज्ञी अविकल रूप में है ।
? असंख्यात
शुद्ध
-जीवों (भ. २४/१६७) की भांति (वक्तव्य है),
उत्पन्न
? संख्यात
हैं। (भ. २४/९३)
वक्तव्यता (भ. २४/१८६ ) है - १. अनुबन्ध स्थिति
शेष पूर्ववत् यावत् नौवां
है (भ. २४/४, ५) यावत् क्या पर्याप्तक-जीवों से उपपन्न होते हैं ? (प्राप्ति) (भ. २४ / १८४) वैसे ही (वक्तव्य है), (वक्तव्य है), तीनों गमकों (चौथे, पांचवें और छट्ठे) में
वक्तव्यता है,
शेष पूर्ववत्
नौवें गमक में
? (अथवा ) असंख्यात होते हैं ० ?
शेष असंज्ञि जीवों (भ. २४/ १९२, १९३) की भांति (वक्तव्य है) यावत्वक्तव्यता (भ. २४ / ५८-६२) है उसी प्रकार यहां भी (वक्तव्य है), इतना विशेष है अवगाहना गमकों में असंज्ञि जीवों पूर्ववत्,
(वक्तव्यता),
? (अथवा ) असंज्ञी
निरवशेष
हैं।
? (अथवा ) असंख्यात
? (अथवा ) संख्यात
हैं।
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E
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७४८ ७४८
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२०३
२०३
२०३
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"1
७४९ ७४९
"
३.
५.
७४८ २०८ २
1 1
८
२०४
२
२०५ शीर्षक
७४९
२१० ३,४
७४९ २१० ६
"
९
९
अविकल रूप से
११
गमकों की
"
२०४ शीर्षक तेतीसवां आलापक पृथ्वीकायिक-जीवों में भवनपति
देवों का उपपात आदि
होते हैं? वाणमन्तर
x
"
७४९ २१० ७४९ २१० ९ ७४९ ७४९
२१० १०
"
७५०
७५० २१४
र
२१० ११
१५
"
७४९ २१० १६ ७४९ २१० १७ १८ २११ १ २११ २
"
२११ ३.
६
७४९ २१३ १ २१३
७५०
र
अशुद्ध
संज्ञी पञ्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिकजीवों की
लब्धि वक्तव्य है,
में संज्ञी
समान वक्तव्य
लब्धि संज्ञी
के समान
३.
२४५, २२४)
जो
तीनों प्रकार के योग, दोनों प्रकार के उपयोग- ( साकार उपयोग और अनाकार उपयोग)।
स्थिति- जघन्यतः हैं ।
यावत् (भ. २४/२०६-२१० ) स्थिति-जघन्यतः
अपेक्षा जानना होने योग्य है ?
शुद्ध
संज्ञि मनुष्यों की
लब्धि (भ. २४/९६-९८) (वक्तव्य
8),
में (पृथ्वीकायिकों में उपपद्यमान) संज्ञि
होते हैं? वानमन्तर
तेतीसवां आलापक: पृथ्वी
कायिक-जीवों में भवनपति देवों का उपपात आदि
यावत् परिणमन करते हैं। (भ. १/ (भ. १/२४५, २२४) यावत्
परिणमन करते हैं। उनमें जो
योग तीनों प्रकार के उपयोग दोनों
प्रकार के - ( साकार उपयोग और
अनाकार उपयोग)
स्थिति जघन्यतः
है,
२१०),
काल की अपेक्षा जाननी चाहिए।
यावत्
समान (भ. २४/१९७) वक्तव्य
लब्धि (पृथ्वीकायिकों में उपपद्यमान) संज्ञि
के मध्यम तीन गमकों (भ. २४/
अनुबन्ध स्थिति
अनुबन्ध-स्थिति -ग्रहण काल
ज्ञातव्य है,
तीन गमक है । शेष
- ग्रहण, काल ज्ञातव्य हैं, तीन गमकों है, शेष
वक्तव्य । सर्वत्र भव की अपेक्षा से ज्ञातव्य हैं। सर्वत्र भव की अपेक्षा में काल की अपेक्षा तक काल की अपेक्षा से होने योग्य है ?
होने योग्य है० ?
१९७) के समान
निरवशेष
गमकों (भ. २४/१९७) की
x
(भ. २४/२०६-२१०) यावत् स्थिति जघन्यतः
अपेक्षा को जानना होने योग्य है ० ?
गमक वक्तव्य हैं (भ. २४/२०६ - गमक (भ. २४/२०६-२१० )
वक्तव्य हैं,
काल की अपेक्षा को जानना चाहिए।
हैं (भ. ६/८३) यावत्