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सूत्र पंक्ति
अशुद्ध इसी प्रकार धन प्राप्त कर कार्य (तिलक आदि) मंगल
और गन्ध इन रहने वाले.....?
पृष्ठ | सूत्र पंक्ति | अशुद्ध ४८८ २२५/९,१० स्कंध |४८८ | २२५/९ | जैसे-षट्-प्रदेशी स्कन्ध की
वक्तव्यता, इसी प्रकार
शतक १३ सं.गा. ३ | समुद्घात।।
(स्कंध) जैसे-षट्प्रदेशिक (स्कन्ध) वैसे
,
उसी प्रकार धन प्राप्त कर, कार्य (तिलक आदि), मंगल
और गन्ध-इन रहने वाले०?
६
२
होते हैं ? यावत्
उपपत्र-पूर्व०?
| उपपन्न-पूर्व है ४ | इसी प्रकार सब जीव
है। इसी प्रकार ४ । इसी प्रकार सब जीव भी ७,८ वानमंतर, ज्योतिष्क, सौधर्म
-विमानावासो में.....? रूप में.....?
सब जीवों १४५, १ | यह जीव सब जीवों ४७,४०,
| ५१ | , १४६- १ | क्या सब जीव
४८,५०,
इस प्रकार समस्त जीव हैं। इस प्रकार इस प्रकार समस्त जीव भी वानमंतरों, ज्योतिष्कों, सौधर्मों |-विमानावासो में०? रूप में? सभी जीव भी यह जीव समस्त जीवों
होते ह? यावत् तीन उत्कृष्टतः | अनाकार- उपयोग अनाकार - उपयोग गमक की भांति | बालुका प्रभा | संख्येय विस्तृत और असंख्येय
विस्तृत ५ की रत्न-प्रभा
| होते होते २६ | ३,४ | असंख्येय विस्तृत २७ , २ | उपपन्न होते हैं? यावत्
| सौधर्म-कल्प के तीन गमक सौधर्म की वक्तव्यता है,
समुद्घात ।।१॥ होते हैं यावत् होते हैं यावत् तीन, उत्कर्षतः अनाकार-उपयोग अनाकार-उपयोग गमकों की भांति वालुका-प्रभा संख्येय-विस्तृत और असंख्येयविस्तृत रत्नप्रभा होते-होते असंख्येय-विस्तृत उपपन्न होते हैं यावत् | सौधर्म-कल्प के देवों के तीन गमक सौधर्म-देवों की वक्तव्यता बतलाई गई है, ईशान-देवों के गमक सनत्कुमार-देवों की सहस्रार-कल्प के देवों की
क्या समस्त जीव
| १६७| ३ | विज्ञाता सर्वज्ञ
विज्ञाता, सर्वज्ञ १७३ | ३ | अधः-सप्तमी
अधःसप्तमी पंचविध-देवों की स्थिति-पद पंचविध-देवों की स्थिति का पद | ८४ |-अनुत्तरोपपातिक वैमानिक-देवों |-अनुत्तरोपपातिक-वैमानिक-देवों
२ अन्तर्मुहूर्त उत्कृष्टतः अन्तर्मुहूर्त, उत्कर्षतः
५ एक समय उत्कृष्टतः एक समय, उत्कर्षतः - सर्वत्र | उससे
उनसे
पृष्ठ | सूत्र पंक्ति अशुद्ध | ४ वनस्पतिकायिक जीव
वनस्पतिकायिक-जीव ३ | ब्रह्म-लोक-कल्प अरिष्ट-विमान- ब्रह्म-लोक-कल्प में अरिष्ट-विमान प्रस्तर के नीचे
|-प्रस्तर के नीचे, ३ मध्य है वहां
मध्य है, वहां वह रुचक..
यह पैरा पिछले पैर के साथ है। सादि-सपर्यवसित है।
सादि-सपर्यवसित है, संस्थान क्या है?
उसका संस्थान क्या है? प्रवाहित है।
प्रवाहित है, प्रदेश है।
प्रदेश वाली हैं, असंख्येय प्रदेश हैं।
असंख्येय प्रदेश हैं, ७ -सपर्यवसित है।
-सपर्यवसित है, ९ इन्द्रा की भांति नैऋति इन्द्रा की भांति, नैऋति कितने प्रदेश हैं?
उसके कितने प्रदेश हैं? प्रदेश वाली हैं?
प्रदेश हैं? | पर्यवसित है? संस्थान क्या है? वह पर्यवसित है? उसका संस्थान
क्या है? ४ | प्रवाहित है।
प्रवाहित है, नहीं होती लोक की
नहीं होती। लोक की असंख्येय प्रदेश हैं।
असंख्येय प्रदेश हैं, -सपर्यवसित है।
-सपर्यवसित है, ५०० ५५ शीर्षक
लोक-पद | होता है। उपयोग
होता है।
उपयोग शीर्षक | धर्मास्तिकाय आदि धर्मास्तिकाय-आदि ६३ |३,८ प्रदेशों की
प्रदेशों से भी (स्पर्शना) की | ८ अद्धासमय की भी वक्तव्यता अद्धा समयों से भी (स्पर्शना) (की
वक्तव्यता) २ प्रदेशों की
प्रदेशों से भी (स्पर्शना) की ३ | प्रदेशों की
प्रदेशों से भी (स्पर्शना) की ५०२ २-३ | प्रदेशों की
प्रदेशों से भी (स्पर्शना) की इतना विशेष है- जघन्य-पद इतना विशेष है-जघन्य-पद जघन्य पद
जघन्य-पद जघन्य-पद मे
जघन्य-पद में २ की वक्तव्यता वैसे की निरवशेष
निरवशेष ४ प्रदेशों की
प्रदेशों से भी (स्पर्शना) की ६ अद्धा-समय से
अद्धा समयों से भी (स्पर्शना) (की
वक्तव्यता) | अद्धा-समय के कितने प्रदेश कितने अद्धा-समय अवगाढ हैं?
अवगाढ़ हैं। ५०६ अनन्त,
अनन्त। ५०६ अद्धासमय । यावत् कितने अद्धासमय अद्धा-समय यावत् कितने अद्धा
समय
| ईशान के गमकों
सनत्कुमार की १० सहसार-कल्प की
की भी
भी
३६ | २,४
५०२
१९८| २ | अच्युत- कल्प-,
५-१२ आत्मा है, ४,६ | भजनीय है।
अच्युत-कल्प-, -आत्मा है भजनीय हैं।
७ | भजनीय है। २ विशेषाधिक है? सर्वत्र उससे
४ स्तनितकुमार देवों १,३.५ जीवों ५-६ वैमानिक देवों २,३ | की भी २ जैसे सौधर्म-कल्प
भजनीय हैं। विशेषाधिक हैं? उनसे स्तनितकुमार-देवों
वैसे
इनकी वक्तव्यता नहीं है। ये वक्तव्य नहीं हैं, असंख्येय विस्तृत
असंख्येय-विस्तृत अनुत्तरोपपातिक उपपत्र अनुत्तरोपपातिक-देव उपपत्र | ग्रैवेयक विमानों
| ग्रैवेयक-विमानों ३८ | ३ | हां गौतम!
हां, गौतम! जा रहा है यावत्
जा रहा है यावत् ४३ | १० | षष्ठी तमा-पृथ्वी के पांच कम एक | छट्री तमा-पृथ्वी के पांच कम एक |
लाख नौ सौ पिचानवें | लाख निन्यानवे हजार नौ सौ पिचानवें ४३ | २६ | अल्प द्युतिकतर
अल्पद्युतिकतर अनिष्ट यावत्
अनिष्ट (भ. १/३५७) यावत्
नैरयिक हां गौतम
हां, गौतम ४५/ ५ महती है? पृच्छा ।
महती है-पृच्छा। ४६ | १ | पृथ्वीकायिक यावत् वनस्पतिकायिक पृथ्वीकायिक- यावत्
वनस्पतिकायिक४६ २ जीव हैं,
-जीव हैं, ४६ | ३ | पृथ्वीकाधिक यावत्
पृथ्वीकायिक- यावत्
-जीवों
नैरयिकों
वैमानिक-देवों
इस प्रकार जैसे सौधर्म-कल्प (भ. १२/२१४) जा रहा है यावत् नो-आत्मा
१५ जा रहा है । यावत् २२२ १५ नो- आत्मा