________________
श. ४१ : उ. ५-१२ : सू. ३६-४४
भगवती सूत्र पांचवां-अट्ठाईसवां उद्देशक (पांचवा उद्देशक) ३६. भन्ते! कृष्णलेश्य-राशियुग्म-कृतयुग्म-नैरयिक-जीव कहां से आकर उपपन्न होते हैं...? इन जीवों का उपपात वैसा ही बतलाना चाहिए जैसा धूमप्रभा में उपपन्न जीवों के विषय में बतलाया गया, शेष जैसा प्रथम उद्देशक में बतलाया गया वैसा बतलाना चाहिए। कृष्णलेश्य-राशियुग्म-कृतयुग्म-असुरकुमार-जीवों के विषय में वैसा ही बतलाना चाहिए, इसी प्रकार यावत् कृष्ण्लेश्य-राशियुग्म-कृतयुग्म-वानमन्तर-देवों के विषय में बतलाना चाहिए। कृष्णलेश्य-राशियुग्म-कृतयुग्म-मनुष्यों के विषय में भी वैसा ही बतलाना चाहिए जैसा कृष्णलेश्य-राशियुग्म-कृतयुग्म-नैरयिक-जीवों के विषय में बतलाया गया (भ. ४१।११)। वे जीव आत्म-अयश का जीवन जीते हैं। उन जीवों के विषय में ऐसा नहीं बतलाना चाहिए कि ये जीव लेश्या-रहित, क्रिया-रहित, उसी भव में सिद्ध होते हैं, शेष जैसा प्रथम उद्देशक में बतलाया गया है वैसा बतलाना चाहिए। ३७. भन्ते! वह ऐसा ही है। भन्ते! वह ऐसा ही है। (छठा उद्देशक) ३८. कृष्णलेश्य-राशियुग्म-त्र्योज-नैरयिक-जीवों के विषय में भी इसी प्रकार पूरा उद्देशक
बतलाना चाहिए। ३९. भन्ते! वह ऐसा ही है। भन्ते! वह ऐसा ही है। (सातवां उद्देशक) ४०. भन्ते! कृष्णलेश्य-राशियुग्म-द्वापरयुग्म-नैरयिक-जीवों के विषय में इसी प्रकार पूरा
उद्देशक बतलाना चाहिए। ४१. भन्ते! वह ऐसा ही है। भन्ते! वह ऐसा ही है। (आठवां उद्देशक) ४२. कृष्णलेश्य-राशियुग्म-कल्योज-नैरयिक-जीवों के विषय में भी इसी प्रकार पूरा उद्देशक बतलाना चाहिए। इन जीवों का परिमाण और संबंध जैसा औधिक-उद्देशकों में बतलाया गया है वैसा बतलाना चाहिए। ४३. भन्ते! वह ऐसा ही है। भन्ते! वह ऐसा ही है। (नवां-बारहवां उद्देशक) ४४. जैसे कृष्णलेश्य-जीवों के विषय में राशियुग्म-कृतयुग्म, राशियुग्म-त्र्योज, राशियुग्म-द्वापरयुग्म, राशियुग्म-कल्योज के चार उद्देशक बतलाये गये वैसे ही नीललेश्य-जीवों के विषय में इन्हीं चार उद्देशकों को सम्पूर्ण रूप से बतलाना चाहिए, केवल इतना अन्तर है-नीललेश्य-राशियुग्म-कृतयुग्म-, राशियुग्म-त्र्योज-, राशियुग्म-द्वापरयुग्म-, राशियुग्म-कल्योज)-नैरयिक जीवों का उपपात जैसा बालुकाप्रभा के नैरयिक जीवों का बतलाया गया है वैसा बतलाना चाहिए, शेष उसी प्रकार वक्तव्य है।
९५०