________________
चालीसवां शतक पहला संज्ञी-पंचेन्द्रिय-महायुग्म-शतक
पहला उद्देशक महायुग्म-संज्ञी-पंचेन्द्रियों में उपपात-आदि-पद १. भन्ते! कृतयुग्म-कृतयुग्म-संज्ञी-पंचेन्द्रिय-जीव कहां से आकर उत्पन्न होते हैं....? इन जीवों में उत्पात चारों ही गतियों से होता है। इनमें उत्पन्न होने वाले जीव संख्येय-वर्षआयुष्य वाले होते हैं, असंख्येय-वर्ष-आयुष्य वाले होते हैं, पर्याप्तक होते है और अपर्याप्तक होते हैं, कहीं से भी उत्पन्न होने का प्रतिषेध नहीं है यावत् अनुत्तर-विमानों से भी आकर उत्पन्न होते हैं। इन जीवों का परिमाण, अपहार और अवगाहना जैसी कृतयुग्म-कृतयुग्म-असंज्ञी-पंचेन्द्रिय-जीवों की बतलाई गई थी वैसी बतलानी चाहिए। ये जीव वेदनीय-कर्म को छोड़कर सात कर्म-प्रकृतियों के बन्धक भी होते हैं, अबन्धक भी होते हैं, वेदनीय-कर्म के बन्धक होते हैं, अबन्धक नहीं होते। ये जीव मोहनीय-कर्म के वेदक भी होते हैं, अवेदक भी होते हैं, शेष सातों ही कर्मों के वेदक होते हैं, अवेदक नहीं होते। ये जीव सात-वेदक भी होते हैं असात-वेदक भी होते हैं। इन जीवों के मोहनीय-कर्म का उदय भी होता है, अनुदय भी होता है, शेष सातों ही कर्मों का उदय होता है, अनुदय नहीं होता। ये जीव नाम- और गोत्र-कर्म के उदीरक होते हैं, अनुदीरक नहीं होते, शेष छहों ही कर्मों के उदीरक भी होते हैं, अनुदीरक भी होते हैं। ये जीव कृष्णलेश्य भी होते हैं यावत् शुक्ललेश्य भी होते हैं। ये जीव सम्यग्-दृष्टि भी होते हैं, मिथ्या-दृष्टि भी होते हैं, सम्यग्-मिथ्या-दृष्टि भी होते हैं। ये जीव ज्ञानी भी होते हैं, अज्ञानी भी होते हैं। ये जीव मन-योगी भी होते हैं, वचन-योगी भी होते हैं, काय-योगी भी होते हैं। इन जीवों में उपयोग, वर्ण (वर्ण, गंध, रस आदि) आदि, उच्छ्वासक-निःश्वासक और आहारक जैसा कृतयुग्म-कृतयुग्म-एकेन्द्रिय-जीवों में बतलाया गया है (भ. ३५।१०) वैसा बतलाना चाहिए। ये जीव विरत भी होते हैं, अविरत भी होते हैं, विरताविरत भी होते हैं। ये जीव क्रिया-सहित होते हैं, क्रिया-रहित नहीं होते। २. भंते! वे कृतयुग्म-कृतयुग्म-संज्ञी-पंचेन्द्रिय-जीव क्या सप्तविध-बन्धक होते है? अष्टविध-बन्धक होते हैं? षड्विध-बन्धक होते हैं? एकविध-बन्धक होते हैं? गौतम! वे जीव सप्तविध-बन्धक भी होते हैं यावत् एकविध-बन्धक भी होते हैं। ३. भन्ते! वे कृतयुग्म-कृतयुग्म-संज्ञी-पंचेन्द्रिय-जीव क्या आहार-संज्ञोपयुक्त होते हैं यावत्
९३८